________________
नई इबारत लिखने के लिए तैयार हो जाएँ। हम सभी को याद है कि माऊंट एवरेस्ट पर तेनजिंग और हिलेरी चढ़ने में कितनी बार असफल हुए? सबसे पहले हिलेरी अकेला ही निकला था। ग्लेशियर फिसल पड़े और उसे वापस लौट कर आना पड़ा। हिलेरी दूसरी दफ़ा फिर गया। इस बार बर्फीले तूफानों का उसे सामना करना पड़ा और उसे फिर लौटना पड़ा। वह तीसरी दफ़ा फिर गया। हिमपात से वह इस तरह घिर गया कि उसके लिए आगे बढ़ पाना नामुमकिन हो गया।
जब हिलेरी वापस लौट कर आया तो लोगों ने उसे घेर लिया और पूछा कि तीसरी असफलता पर तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया है ? हिलेरी ने एवरेस्ट की तरफ़ अपनी नज़र गड़ाते हुए कहा, 'सुनो एवरेस्ट, जो तुम्हारी समस्या है, वह मेरी नहीं है। तुम्हारी समस्या यह है कि तुम जितनी ऊँचाई पर खड़े हो, उससे ज़्यादा और ऊँचे नहीं हो सकते। एक ईंच भी नहीं ! पर, मैं अपने धैर्य और कठिन परिश्रम का उपयोग करके एक-न-एक दिन, अपने पाँव तुम्हारे शिखर पर रखने में ज़रूर सफल हो जाऊँगा'। कहते हैं कि चौथी बार उसने तेनजिंग की मदद ली और अंततः हिलेरी एवरेस्ट पर चढ़ने में सफल हो गया।
जब हिलेरी अपने आत्मविश्वास और धैर्य के बलबूते पर एवरेस्ट पर चढ़ सकता है तो क्या हम अपनी जिंदगी की बाधाओं की पटरियों को नहीं लांघ सकते? नेपोलियन ने कभी कहा था – 'असंभव जैसा शब्द मेरे शब्दकोष में नहीं है।' मैं कहना चाहूँगा कि तुम भी अपने आत्मविश्वास को जगाओ और असंभव के 'अ' को हटा फेंको। हर असंभव को भी संभव बना डालो। नेपालियन जब आल्प्स की पहाड़ियों पर चढ़ने के लिए तत्पर हुआ, तो उन पहाड़ियों की गोद में रहने वाली बुढ़िया ने कहा था – 'नेपोलियन, यह तू कौनसा सपना देख कर आया है ? आज तक न जाने कितने शासक आल्प्स की पहाड़ियों को पार करने के लिए तत्पर हुए, मगर हर कोई यहीं से लौट गया। वे एक पहाड़ी भी पार नहीं कर पाए। तुम्हारे पास तो इतना दलबल है। तुम इतनी पहाड़ियों को कैसे पार कर पाओगे? मेरा कहना मानो और यहीं से वापस चले जाओ।'
कहते हैं कि तब नेपोलियन ने कहा था, बूढी अम्मा, नेपोलियन के सामने दुनिया का ऐसा कोई आल्प्स नहीं है जिसे नेपोलियन चाहे और पार न कर पाए। मैं इसे अवश्य पार करूँगा। मेरे लिए असंभव जैसा कुछ भी कार्य नहीं है। बुढ़िया ने नेपोलियन को ऊपर से नीचे तक ध्यान से देखा। उसकी आँखों की चमक को, छाती की उन्नतता को देखा और कहा – 'नेपोलियन, मैं बुढ़िया नहीं बल्कि इन पहाड़ों की देवी हूँ जो इन पहाड़ों की रक्षा करती चली आई हूँ। अब तक शासक तो बहुत आए पर जो आत्मविश्वास, जो मनोबल, जो सुदृढ़ मानसिकता मुझे तुम्हारे भीतर दिखाई दी, वह अब तक और किसी शासक के भीतर दिखाई न दी। आओ, मैं तुम्हारा अभिनंदन करती हूँ और तुम्हारी
LIFE
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org