Book Title: Life ho to Aisi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 77
________________ ऊपर आए तो दूध। पानी हो तो तैर भी ले, यह ठहरा दूध। मेंढक ने थोड़ी देर तो जद्दोजहद की और फिर दम तोड़ दिया। मन टूटा कि नौका डूबी। दूसरे मेंढ़क के सामने भी वही स्थिति थी मगर उसने सोचा कि निश्चित तौर पर मैं बुरा फँसा हूँ मगर जब तक मेरे जीवन में अंतिम साँस रहेगी तब तक मैं अपने आप को बचाने का प्रयत्न करता रहूँगा...करता रहूँगा... । वह मेंढ़क लगातार ऊपर-नीचे, नीचे-ऊपर, आगे-पीछे अपने हाथ-पाँव चलाता रहा। संघर्ष चल रहा था। मेंढ़क के हाथ-पाँव चलाने से जो मंथन हुआ उससे दूध में रहने वाली क्रीम ऊपर आ गयी। मेंढ़क उस क्रीम पर चढ़ बैठा। जब ट्रक अपने गंतव्य पर पहुँचा तो सारे केन उतारे गए। सबके ढक्कन खोले गए। जब उन दो केनों के ढक्कन खुले तो एक में मरा हुआ मेंढ़क निकला और दूसरे में ज़िंदा मेंढ़क। __ मेंढक को बचाने वाला कौन था? कोई चाहे उसे किसी पराशक्ति का नाम क्यों न दे दे, मगर अगर किसी ने बचाया तो केवल उसकी हिम्मत ने ही उसे बचाया। यह दुनिया और ये सामाजिक संबंध विश्वास पर टिके हैं। पति-पत्नी के रिश्ते भी विश्वास पर कायम हैं। अब तक औरों पर विश्वास किया है लेकिन मैं कहना चाहूँगा कि व्यक्ति पहले अपने आप पर विश्वास करे। आत्मविश्वास ही आदमी की प्रगति की पहली सीढ़ी हुआ करता है। आत्मविश्वास जीवन की बेहतरीन ताक़त है। इसी में गति और प्रगति का राज़ छुपा हुआ है। जब-जब आदमी संकट से घिर जाए तब-तब आत्मविश्वास रूपी हनुमान को याद किया जाए। आदमी का संकटमोचक यदि कोई है तो वह आदमी का अपना आत्मविश्वास, उसकी अपनी हिम्मत ही है। सीता की ताक़त राम है, राम की ताक़त हनुमान है और हनुमान की ताक़त आत्मविश्वास है। जब सीता जी का हरण हो चुका था तो सीता को ढूँढ़ने के लिए नल-नील-हनुमान और सारे वानर निकल पड़े। समुद्रतट पर पहुँच कर नल ने कहा – मैं सौ कोस तो तैर सकता हूँ मगर इससे ज़्यादा नहीं तैर सकता। नील ने कहा - मैं दो सौ कोस से ज़्यादा नहीं तैर सकता। सब लोगों की नज़र आख़िरकार हनुमान पर गई। लोगों ने कहा, 'हनुमान, तुम तो न केवल चार-सौ कोस जा सकते हो, वरन् वापस चार सौ कोस आ भी सकते हो। हनुमान, तुम अपनी वास्तविक शक्ति को पहचानो, अपनी सोई हुई ताक़त को जाग्रत करो। तुम्हारे लिए एक रावण तो क्या, सैकड़ों पापियों का अकेले वध करना संभव है। अरे, तुम एक सागर तो क्या सात समन्दर भी पार कर सकते हो।' सारे वानरों ने मिलकर हनुमान की सोई हुई भीतरी शक्ति को जाग्रत करने का जो काम किया, वही काम आज मैं कर रहा हूँ। मैं आपके भीतर सोई हुई शक्तियों को जगाने का आह्वान कर रहा हूँ। हनुमान की सोई हुई शक्तियाँ जागृत हुईं कि हनुमान ने लंका पार कर ली और आपकी भी मानसिक 76 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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