Book Title: Life ho to Aisi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 50
________________ वे बड़े ख़ुशनसीब होते हैं । आप तो शांति को अपना सिंदूर बनाइए और शांति को ही अपना सौभाग्य। हाथों में शांति का ही कंगन और ब्रासलेट पहनिए और शांति की ही चेन और मंगलसूत्र । आप जिस घर में रहें उस घर को शांति का उपवन बनाइए। आप जिस छत की छाँह में बैठे हैं उस छत को शांति की सीमेंट से तैयार करें। आप जिन नज़रों से देखें उन नज़रों से शांति का नूर बरसाइए । जिस ज़बान से बोलें उस ज़बान पर शांति का शहद लगाएँ। आप जिन कानों से सुनें उन कानों में शांति का संगीत घोलें। जीवन में न तो ज़्यादा सरपच्ची करें और न ही ज्यादा छातीकूटा। दिनभर हाय-हाय करने की आदत छोड़ें। प्रभु ने जीवन के रूप में जो प्रसाद दिया है, स्वर्ग जैसे मीठे रिश्ते दिए हैं, सुख-साधन दिए हैं, उनका आनंद लीजिए, उनमें आनंदित रहने की आदत डालिए। हम सब साथ-साथ रहें, साथ-साथ खाएँ- पिएँ, साथ-साथ जिएँ-मरें। राम की तरह जिएँ, कृष्ण की तरह करें और महावीर की तरह मरें। तीनों ही जीवन को सार्थक करेंगे और तीनों ही जीवन को पूर्णता देंगे। शुरुआत होगी शांति से । शांति से खाओ, शांति से जाओ। शांति से चलो, शांति से कपड़े पहनो । हर काम शांति से करो । बस, धीरज धरो और शांति से जिओ । अपने मन में सदा शांति का चैनल चलाओ। शांति वज़ूद दो। जीवन में शांति के बादशाह बनो। किसी को ईश्वर या मोक्ष मिले या न मिले, पर यदि शांति की ख़ुशहाली मिल गई, चित्त शांतिमय हो गया तो समझो कि यह ईश्वर और मोक्ष प्राप्ति के समान ही है। शांति स्वयं प्रस्थान बिन्दु है। शांति स्वयं पड़ाव है। शांति स्वयं मंज़िल है। शांति से बढ़कर न कोई मंज़िल है, न कोई पड़ाव है, न कोई मील का पत्थर है। शांति से बढ़कर कोई प्रकाश स्तम्भ नहीं कि जिसको हम अपनी आँखों में बसा कर रख सकें। शांति से बढ़कर कोई सुवास नहीं जिसे हम अपने नासापुटों में सँजो सकें । शांति से बढ़कर कोई संगीत नहीं जिसे हम अपने कानों में संजोकर रख सकें। अगर आप चार लोगों के बीच बैठे हैं, उन लोगों से बात-चीत कर रहे हैं और बातचीत करते-करते ही यदि लगे कि वातावरण दूषित हो गया, हमारी शांति प्रभावित हो गई, तो बिना किसी झिझक के, बिना किसी ननुनच के, बिना किसी संकोच के अपने आपको तत्काल उस वातावरण से अलग कर लें। अब अगर एक पल भी आप वहाँ ठहर गए तो हमारी शांति खंडित होगी और जब भी शांति खंडित होती है तो या तो वह अशांति और चिंता का रूप ले लेती या क्रोध की आग पकड़ लेती है या वैमनस्य के जाल में हमें उलझा देती है । जो समझेगा अपनी अशांति को, वही शांति की ओर अपने क़दम बढ़ा सकेगा। जो समझेगा कि मैं अशांत हूँ, अमुक व्यक्ति या अमुक परिस्थिति मेरे लिए अशांति का कारण है, वह व्यक्ति ही अपनी विनम्र बुद्धि में, अपने सरल हृदय में शांति की दृष्टि को, शांति की लौ को, शांति के नज़रिये को, शांति की शैली को विकसित कर सकेगा। वरना छातीकूटा है ज़िंदगी, माथाफोड़ी है जिंदगी। सब लोगों के बीच जीना, सब Jain Education International. For Personal & Private Use Only LIFE 49 www.jainelibrary.org

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