Book Title: Life ho to Aisi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 63
________________ अगर हम प्रकृति की इस परिवर्तनशीलता को समझ लें तो हम न तो कभी गुमान करेंगे और न ही शिकायत करेंगे। मिल गया, पा गए तो गर्व नहीं और खो गया तो गिला-शिकवा नहीं। यही जीवन की सहजता है। जो आया है वह जाएगा, जो पाया है वह खोएगा। जिनका साथ मिला है वह छूटेगा। इस दुनिया में सनातन कुछ भी नहीं है। 'दिस टू विल पास' – यहाँ सब बीतता है । दुःख है तब भी और सुख है तब भी याद रखो, 'दिस टू विल पास।' आप यदि नगर-प्रमुख हैं, मंत्री या बड़े नेता हैं तब भी याद रखें 'दिस टू विल पास' । करोड़पति भी ध्यान रखें- 'दिस टू विल पास'। अगर कोई दुःख से, पीड़ा से, संताप या त्रासदी से भरा हुआ है, वह भी यही सोचे-'दिस टू विल पास' । जब वह न रहा तो यह कौनसा सनातन रहेगा और जब यह न रहेगा तो अगला कौनसा सनातन रहने वाला है ? सब चलाचली का खेल है। इसलिए सहजता से जिएँ। इसमें भी खुश और उसमें भी खुश। पिता ने अपने तीन पुत्रों के बीच धन का बँटवारा कर दिया। बड़े को ज़मीन-जायदाद दी, मंझले को अपना सारा धन-खजाना दिया और सबसे छोटे को अपना व्यापार-व्यवसाय सौंप दिया। उसके परिवहन का व्यापार था। जहाज़ों से माल आता-जाता था।छुटके से पिता ने कहा-'मैं तुझे नौ परिवहन का व्यापार देता हूँ लेकिन तू अभी बहुत छोटा है, तुझे बहुत अनुभव पाने हैं। इसलिए मैं तुझे एक चीज़ और देता हूँ।' यह कहकर पिता ने अपनी अंगुली में पहनी हुई अँगूठी निकाली और छोटे बेटे को देते हुए कहा, – 'बेटा, जब भी तुम्हें लगे कि जिंदगी में बहुत बड़ी मुसीबत की घड़ी आ गई है, तब तुम इस अंगूठी को खोलना। इसमें तुम्हारे लिए मैंने जीवन का बहुत बड़ा संदेश लिखा है।' बेटे ने कहा -'पापा, क्या अभी खोलकर देख लूँ ?' पिता ने कहा – 'नहीं, अभी खोलकर देखा तो इसका कोई मूल्य नहीं होगा। इसे तो तभी खोलना जब तुम पर बहुत बड़ी मुसीबत आ आए।' समय बीतने लगा, पिताजी चल बसे। बेटे का व्यापार भी ठीक चल रहा था कि एक दिन उसे खबर मिली कि समुद्र में उसके तीन मालवाही जहाज़ डूब गए हैं। एक साथ तीन जहाज़ डूबने का उसे ऐसा सदमा लगा कि वह आत्महत्या करने की सोचने लगा। वह अत्यधिक निराश हो गया। तीनों जहाज़ों का जरा भी माल नहीं बच सका। वह घबराया कि अब लोगों का पैसा कैसे चुका पाऊँगा? इससे तो अच्छा है मर ही जाऊँ।वह समुद्र में छलांग लगाने ही वाला था कि उसे पिता द्वारा दी गई अँगूठी की याद आई। उनकी बात भी याद हो आई। उसने अँगूठी का हीरा हटाया तो देखा कि वहाँ एक काग़ज़ है। उस काग़ज़ को खोलकर देखा, उसमें लिखा था - 'बेटा, धीरज रख, यह वक़्त भी बीत जाएगा।' यह पढ़कर उसके मन को ढाढ़स बंधा, सांत्वना मिली। वह वापस अपने घर लौट आया। उसने धीरज और शांति से अपना व्यापार पुनः शुरू किया। वक़्त बदला, और धीरे-धीरे उसने पुनः उन्नति की। अगर आप भी धीरज धारण कर लें तो विपरीत परिस्थितियों में भी आप आगे बढ़ सकते हैं। हमारे धैर्य LIFE Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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