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क्या स्वी
जिंदगी का !
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कभी खट्टा
| कभी मीठा
भगवान संसार-सृजन के कार्य में व्यस्त थे। वे तरह-तरह के खिलौने बना रहे थे और उनके लिए उनके कार्य, कर्त्तव्य और आयुष्य निर्धारित करते जा रहे थे। भगवान ने जो पहला खिलौना उठाया वह था 'गधा'। उस खिलौने में उन्होंने प्राण फूंके और कहा – 'गर्दभराज, मैं तुम्हें धरती पर भेजता हूँ, वहाँ तू जितनी चाहे, मेहनत करते रहना। खाने-पीने के लिए तुझे चिंता नहीं करनी चाहिए। तेरा मालिक तुझे जो डाल देगा, तू उसी में राजी रहेगा। अगर मालिक ने न भी दिया तो गांव-जवार के बाहर पड़ी अकूड़ी से भी तू अपना पेट भर लेना। मैं तेरी कमर बहुत मज़बूत बना रहा हूँ और तुझे पचास साल का आयुष्य देता हूँ'। गधा भगवान की बात सुनकर यह कहते हुए उनके चरणों में लोट गया – 'प्रभो, आपका हर आदेश मुझे स्वीकार है, पर भगवन् , काम करते-करते मेरी तो कमर ही टूट जाएगी। आपकी बड़ी कृपा होगी अगर आप मेरा
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