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है, उसके लिए तैश क्यों खाया जाए ! क्रोध तभी करें जब क्रोध करने के अतिरिक्त कोई विकल्प ही न बचे । अपने मातहत को, बेटे को, बहू को, नौकर को तभी डाँटें-डपटें जब इसके अलावा कोई रास्ता ही न रहे ।
नौकर को अगर छोड़ना भी हो तो गुस्से में न छोड़ें। वह आपके लिए घातक बन सकता है। आपने गुस्से में आकर उसे घर से या दुकान से निकाला है, निश्चय ही इसका गुस्सा उसे भी है। वह अपना गुस्सा आप पर निकाल सकता है। आप पर कोई जानलेवा हमला भी कर सकता है। इसलिए सावधान ! जब भी किसी नौकर को छोडें, मिठास भरे वातावरण में छोड़ें, जाते समय उसे इनाम भी दें और धन्यवाद भी कि इतने समय तक तुमने हमारी सेवा की। यही नहीं, भाई-भाई भी अगर कभी अलग हों, पिता-पुत्र अलग हों,
भी प्रेम के साथ एक-दूसरे से बिदा हों, ताकि अलग होने के बाद एक-दूसरे से मिलने के काबिल तो रहो। ज़रूरत पड़ने पर एक-दूसरे की मदद भी ली - दी जा सके। गुस्से में अगर अलग हो बैठे, तो उपेक्षित बेटा-बहू दूसरों के सामने आपकी बदनामी ही करेंगे। व्यक्ति की समझदारी इसी में है कि वह विपरीत वातावरण बन जाने पर उस पर किस तरह विजय पाता है।
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अब हम देखें कि क्रोध आने पर कैसे इसका निवारण किया जाए -
जब भी गुस्सा आए तो इसे कल पर टालने की आदत डालें। यदि गुस्से को हाथो-हाथ प्रकट कर दिया तो वह बात नहीं होगी, आग का लावा होगा। गुस्से में व्यक्ति, व्यक्ति नहीं होता, पिता पिता नहीं होता । ज्वालामुखी बन जाता है। गुस्सा प्रकट हुआ यानी ज्वालामुखी फट पड़ा। इसलिए गुस्सा आ जाए तो दस मिनट के लिए शांति धारण कर लें । अरे भाई, गुस्सा कोई मामूली चीज़ थोड़े ही है जो जब चाहो तब प्रकट कर दो। इसके लिए तो किसी राजज्योतिषी जी से 'अमृतसिद्धि योग' या 'सर्वार्थसिद्धि योग' का मुहूर्त निकलवाओ। फिर करना गुस्सा । हाथोहाथ अगर गुस्सा कर बैठे तो वह वक़्त आपके लिए 'कालयोग' या 'व्यतिपात' का दुष्प्रभाव दे बैठेगा।
गुस्सा आ गया। कोई बात नहीं, थोड़ा धीरज धरें। धीरज से बड़ा कोई मित्र नहीं है । विपरीत वातावरण बन जाने पर ही धैर्य की परीक्षा होती है । क्रोध का इलाज है धैर्य । 10 मिनट का धीरज आपके 10 घंटे की शांति को बर्बाद होने से बचा सकता है। धीरज छोड़ा कि गये काम से। फिर तो क्रोध का पूरा खानदान आ धमकेगा । आपसे कई तरह के सैलटैक्स, इनकमटैक्स वसूल जाएगा। आपकी शांति, आपकी समझदारी, आपके रिश्ते, आपके आनंद - सबको चूहों की तरह कुतर जाएगा ।
ऐसा हुआ : रूसी संत गुर्जिएफ मृत्यु शैय्या पर थे । उनका भक्त अपने पुत्र के साथ उनसे मिलने आया । उसने कहा, 'महात्मन्, मेरे पुत्र को कुछ जीवनोपयोगी शिक्षा दें।' गुर्जिएफ ने उस लड़के को ध्यान से देखा और कहा, 'बेटा, जब भी कोई तुम पर क्रोध करे तुम तुरंत उसका जवाब मत देना। ज़वाब ज़रूर देना, लेकिन चौबीस घंटे बाद ।' युवा - पुत्र सहमत हो गया। अब हुआ यह कि क्रोध के निमित्त आते लेकिन संत
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