Book Title: Launkagacchha aur Sthanakvasi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Kalyanvijayji

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Page 11
________________ पट्टावली-पराग लखा का दूसरा नाम लऊका भी है। वह संयत नहीं है, फिर भी यति से अधिक है। लोगों ने लौका-मत को परख लिया है। सं० १५०८ में सिद्धपुर में नौका ने सोज-पूर्वक शुद्ध जिन मत की स्थापना की है। लौंका मत प्रसिद्ध हुपा । बादशाह मुहम्मद लुका-मत को प्रमाण मानता है। सूबा, सेवक सव कोई इसको मानते हैं और लखा गुरु के चरणों में शिर नवांते हैं। उस समय सोरठ देश में लीम्बड़ी गांव का लखमसी नामक एक कामदार था, उसने लुकागुरु का उपदेश ग्रहण किया और देश-विदेश में विस्तार किया। इस मत के सम्बन्ध में जो कोई वाद-विवाद करता है तो न्यायाशीश भी 'लोका' का पक्षपात करता है । "सं० १५३३ के वर्ष में लौका-मत के प्रादुर्भावक शाह लोंका ने ५६ वर्ष को उम्र में स्वर्गवास प्राप्त किया और १५३३ में ही लोंका ने भारगजी को शिक्षा दी थी।" भागजी ऋषि सत्य का और जीव-दया का प्रचार करते थे। वर्धमान की पेढी के नायक बनकर भागजी ऋषि देश-विदेश में विचरते थे और अब तक उनकी शुद्ध परम्परा चलती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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