Book Title: Launkagacchha aur Sthanakvasi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Kalyanvijayji

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Page 83
________________ पावली-पराग ८१ वाला अपने पास तक नहीं फटकेगा, न पपनी पेटपूजा ही सुख से होगी, इस कारण से लौका के वेशधारी शिष्यों ने प्रतिमापूषा के विरोध के अतिरिक्त शेष सभी लौका के उपदेशों को अपने प्रचार में से निकाल दिया, इतना ही नहीं, कतिपय बातें तो लौका के मन्तव्यों का विरोध करने वाली भी प्रचलित कर दीं। भिक्षुत्रितय ने जिन 'सूत्रपाठों' को मूल में से हटा दिया है, उनको बनावटी कहकर अपना बचाव करते हैं । “गरणघरों की रचना को हो ये पागम मानकर दूसरे पाठों को बनावटी मानते हैं, तब तो इनको मूल भागमों में से अभी बहुत पाठ निकालना शेष है। स्थानांग सूत्र मौर प्रौपपातिक सूत्र में सात निन्हवों के नाम संनिहित हैं, जो पिछला प्रक्षेप है, क्योंकि मन्तिम निन्हव गोष्ठामाहिल भगवान् महावीर के निर्वाण से ५८४ वर्ष बीतने पर हुआ था, इसी प्रकार नन्दीसूत्र मौर मनुयोग द्वार में कौटिल्य, कनकसप्तति, वैशेषिकदर्शन, बुद्धवचन, पैराशिकमत, षष्ठितन्त्र, माठर, भागवत, पातञ्जल, योगशास्त्र मादि मनेक पर्वाचीनमत और ग्रन्थों के नामों के उल्लेख उपलब्ध होते हैं जिनका अस्तित्व ही गणपरों द्वारा की गई मागम-रचना के समय में नहीं था, इनको प्रक्षिप्त मानकर भिक्षुत्रितय ने पायमों में से क्यों नहीं निकाला, यह समझ में नहीं पाता। प्रक्षिप्त पाठ मानकर ही मागमों में से पाठों को दूर करना था तो सर्वप्रथम उपयुक्त पाठों का निकालना मावश्यक था, भयवा तो अर्वाचीन पाठ वाले मागमों को मप्रमाणिक घोषित करना था सो तो नहीं किया, केवल "चैत्यादि के पाठों को सूत्रों में से हटाए;" इससे सिद्ध है कि बनावटी कहकर चैत्य-सम्बन्धी पाठों को हटाने की अपनी जबावदारी कम करने की चाल मात्र है। गणधर तीर्थङ्करों के उपदेशों को शब्दात्मक रचना में व्यवस्थित करके मूल मागम बनाते हैं और उन भागमों को अपने शिष्यों को पढ़ाते समय गणघर पोर मनुयोगपर चार प्रकार के व्याख्यानांगों से विभूषित कर पंचांगी के रूप में व्यवस्थित करते हैं। भागों की पंचांगी के नाम ये हैं - १ सूत्र, अर्थ २, अन्य ३, नियुक्ति ४ और ५ संग्रहणी। माज भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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