Book Title: Launkagacchha aur Sthanakvasi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Kalyanvijayji

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Page 91
________________ पट्टावली-पराग ८९ इसी प्रकार वृहत्कल्पोक्त गंगा, यमुना, सरयू, इरावती और मही इन पांच महानदियों का परिचय देते हुए जेठमलजी इरावतो को लाहौर के पास की रावी बताते हैं और मही गुजरात में बडौदा शहर के उत्तर में ८-१० माईल के फैसले पर बहने वाली मही बतति हैं । जेठमलजी कौशम्बी के मागे दक्षिण में समुद्र मोर उसकी जगती बताते हैं, यह भौगोलिक "मज्ञान" मात्र है, कौशम्बी नगरो माधुनिक इलाहबाद से दक्षिण में वत्स देश की राजधानी थी। उनकी दक्षिण सीमा विन्ध्याचल के उत्तर प्रदेश में ही समाप्त हो जाती थी मोर समुद्र कहाँ से १ हजार माईल से भी अधिक दूर था, इस परिस्थिति में कौशम्बी की दक्षिण सीमा समुद्र के निकट बताना भोगेलिक अज्ञानता सूचक है। पश्चिम दिशा में पायंदेश की अन्तिम सीमा यूभणानगरी कहते हैं पौर उनकी हद कच्छ देश तक बताते हैं, यह भी गल्त है, प्रथम तो नगरी का नाम ही गलत लिखा है, नगरी का नाम थूमणा नहीं, पर उसका नाम "स्थूणा" है पौर वह सिन्ध देश के पश्चिम में कहीं पर पायी हुई थी और उसके पास-पास के प्रदेश को जेनसूत्रों में "स्थूणाविषय" बताया है, कच्छ को नहीं। ___ भारत के उत्तरीय मार्यक्षेत्र की सीमा पंजाब के शहर स्यालकोट तक बताते हैं, यह भी मज्ञानजन्य हैं, स्यालकोट पंजाब प्रदेद में वर्तमान भारत के वायव्यकोण में भाया हुआ है, तब कुणाल देश भारत के उत्तरीय भाग में था बीर भाजकल के "सेटमहेट" के किले को प्राचीनकाल में श्रावस्ती कहते है। गोरखपुर तथा बस्ति जिले के मास-पास का प्रदेश पूर्वकाल में कुरान देश कहलाता था। दशापुरको बेठमसजी देसारणपुर लिखते हैं और उसको माधुनिक मन्दसौर कहते हैं वो यथार्थ नहीं है। दशार्णपुर प्राजकल का मन्दसौर नहीं किन्तु पूर्व जनवा के पहाड़ी प्रदेश में भाए हुए दशार्ण देश की राजधानी थी और दशार्णपुर अथवा मृत्तिकावती इन नामों से प्रसिद्ध पी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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