Book Title: Launkagacchha aur Sthanakvasi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Kalyanvijayji

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Page 97
________________ पट्टावली-पराग को वाचक-परम्परा में सिंहगिरि का नाम नहीं है, किन्तु इस परम्परा में वाचक "ब्रह्मद्वीपकसिंह" का नाम अवश्य आता है, २१ वें स्थविर को "सिरिमन्तो" नाम से उल्लिखित किया है, जो गलत है, वास्तव में इनका नाम "हिमवन्त" है। पट्टावलीकार ने २३ वां नम्बर गोविन्द को दिया है, जो वास्तव में नन्दी को मूल गाथानों में नहीं है, किन्तु यह नाम "प्रक्षिप्त गाथा में" माता है । पट्टावलीकार ने २५ वें स्थविर का नाम "लोहाचार्य" लिखा है, जो पथार्थ नहीं है, इनका खरा नाम "लोहित्याचार्य" है । पट्टावलीलेखक ने २६ वें स्थविर का नाय "दुप्पस' लिखा है, जो अशुद्ध है । देवद्धिगरिण के पट्टगुरु का नाम ',दुप्पस" नहीं किन्तु "दूष्यगणि" है, यह लेखक को समझ लेना चाहिए था। पट्टावलीकार ने देवद्धिगरिण के बाद वीरभद्र २८ शिवभद्र २६ आदि ३३ नाम कल्पित लिखे हैं, प्रतः इन पर ऊहापोह करना निरर्थक है, इनके मागे पट्टावली लेखक ने "ज्ञानाचार्य" "भारगजो" प्रादि लौंकागच्छ को परम्परा के ऋषियों के नाम दिए हैं, इन नामों में भी पंजाबी प्राधुनों की पट्टावली के कई नामों के विरुद्ध पढ़ने वाले नाम हैं जिनकी चर्चा पहले ही पट्टावली-विवरण में की गई. है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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