Book Title: Launkagacchha aur Sthanakvasi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Kalyanvijayji

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ पट्टावली-पराग २५ ये चारों ही पट्टावलियां प्राचार्य देवद्धिगणि क्षमाश्रमण पर्यन्त की हैं। इनमें गणघर सुधर्मा से लेकर नवमें पट्टधर प्राचार्य महागिरि तक के नाम सव में समान हैं, बाद के १८ नामों में एक दूसरे से बहुत ही विरोध है, परन्तु इसकी चर्चा में उतर कर समय खोना बेकार है। पंजाव के स्थानकवासियों को पट्टावली में देवद्धिगरिण के बाद के १८ नाम छोड़ कर आगे के नाम निम्न प्रकार से लिखे हैं - ___"४६ हरिसेन, ४७ कुशलदत्त, ४८ जीवर्षि, ४६ जयसेन, ५० विजयषि, ५१ देवर्षि, ५२ सूरसेनजी, ५३ महासेन, ५४ जयराज, ५५ विजयसेन, ५६ मिश्र(ब)सेन, ५७ विजयसिंह, ५८ शिवराज, ५६ लालजीमल्ल, ६० ज्ञानजी यति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100