Book Title: Launkagacchha aur Sthanakvasi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Kalyanvijayji

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Page 64
________________ ६२ पट्टावली पराग प्रकार से लिखते हैं । पंजाब की पट्टावलियों में देवगिरिण क्षमाश्रमण के वाद १८ नाम छोड़कर ज्ञानजी यति तक के जो नाम मिलते हैं, उनसे भी नहीं मिलने वाले प्राधुनिक स्थानकवासी पंजाबी साधु श्री फूलचन्दजी द्वारा सम्पादित " सुत्तागमे" नामक पुस्तक के दूसरे भाग के प्रारम्भ में दी गई पट्टावली में उपलब्ध होते हैं, जो १८ नाम धन्य पट्टावलियों में नहीं मिलते, वे भी इसमें लिखे मिलते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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