Book Title: Lati Samhita
Author(s): Manikchandra Digambar Jain Granthmala Samiti
Publisher: Manikchandra Digambar Jain Granthmala Samiti
View full book text
________________
( २१ )
उल्लेख किया है । इस संहितामें संहिताको निर्माणकरानेवाले साहू फामनके वंशका भी यत्किंचित् विस्तार के साथ वर्णन दिया है और उससे फामन के पिता, पितामह, पितृव्यों, भाइयों और सबके पुत्र-पौत्रों तथा स्त्रियोंका हाल जाना जाता है । साथ ही, यह मालूम होता है कि वे लोग बहुत कुछ वैभवशाली तथा प्रभाव सम्पन्न थे, इनकी पूर्वनिवासभूमि 'डौकनि' नामकी नगरी था और ये काष्ठासंघी भट्टारकोंकी उस गद्दीको मानते थे - उसके अनुयायी अथवा आम्नायी थे जिसपर क्रमशः कुमारसेन, हेमचन्द्र, पद्मनदी, यश: कीर्ति और क्षेमकीर्ति नामके भट्टारक
१ पार्श्वनाथका यह मंदिर दिगंबर जैन है, और दिगंबर जैनोंके ही अधिकारमें है । इस मंदिर के पासके कंपाउंड (अहाते ) की दीवार में एक लेखवाली शिला चिनी हुई है और उसपर शक संवत १५०९ - वि० सं० १६४४ - - में ' इंद्रबिहार अपरनाम 'महोदयप्रासाद' नामके एक श्वतांबर मंदिरके निर्मापित तथा प्रतिष्ठित होने का उल्लेख है । इस पर से डा० आर भांडारकरने, 'आर्किओलॉजिकल सर्वे वेस्टर्न सर्किल. प्रोग्रेस रिपोर्ट सन् १९१०' में यह अनुमान किया है कि उक्त मंदिर पहले श्वेतांबरी की मिलकियत था (देखो 'प्राचीन लेख संग्रह' द्वितीय भाग) | परंतु भांडारकर महोदयका यह अनुमान, लाटीसंहिता के उक्त कथनको देखते हुए समुचित प्रतीत नहीं होता और इसके कई करण हैं - एक तो यह कि लाटी संहिता उक्त शिलालेख से साढे तीन वर्षके करीब पहलकी लिखी हुई है और उसमें वैराट-जिनालयको, जो कितनेही वर्ष पहले बन चुकाथां, एक दिगंबर जैनद्वारो निर्मापित लिखा है ? दूसरे यह कि शिलालेख में जिस मंदिरका उल्लेख है उसमें मूल नायक प्रतिमा विमलनाथकी बतलाई गई है, ऐसी हालत में मंदिर चिमलनाथके नामसे प्रसिद्ध होना चाहियेथा, पार्श्वनाथ के नामसे नहीं; और तीसरे यह कि शिलालेख एक कंपाउंडकी दीवार में पाया जाता है जिससे यह बहुत कुछ संभव है कि यह दूसरे मंदिरका शिलालेख हो, उसके गिरजाने पर कंपाउंडकी नई रचना अथवा मरम्मतके समय वह उसमें चिन दिया गया हो । इसके सिवाय दोनों मंदिरों का पास पास तथा एकही अहाते में होनाभी कुछ असंभवित नहीं है । पढले कितनेही मंदिर दोनों संप्रदायोंके संयुक्त रहे हैं; उस वक्त आजकल जैसी बेहूदा कशाकशी नहीं थी ।