Book Title: Khavag Sedhi
Author(s): Premsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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मूलगाथाः ]
प्रथम परिशिष्टम्
पुरिसस्स अट्ठवरिसा सोलसवरिसाणि संजलणगाणं। अणुसमयमसंखगुणं दलिअं घेत्तण पकुणेइ । बंधो संतं पाइअघाईणं संख-ऽसंखवासाई ।।५।। पडिसमयमपुव्वाणि खलु असंखेज्जगुणहीणाई (गीतिः)
॥१॥ (उपगीतिः) हयकण्णादोलोव्बट्टणउव्वट्टणकरणअद्धा।
तकालिएसु देइ अपुब्वेसु दलं विसेसूर्ण । हयकण्णकरणकालस्स तिन्नि णामाणि णेयाणि ।५९। तो पुबिल्लभपुव्वाईभ असंखगणहीणदलं ॥७२।। (उपगीति:)
(उपगीतिः) ठिइसंतं संखसहस्सवासमेत्तं तयाणि मोहस्स । तत्तो घिसेसहीण कमेणं जा पुवअन्तिमगा । अंतोमुहुत्तऊणो सोलसवासपमिओ बंधो॥ ६०॥ दीसइ दलिभं पुवापुवेसु विसेसहीणकमं ॥७३।। रससंतं माणस्सप्पमह विसेसाहिअक्कमेण खलु ।
(उपगीतिः )
इगखंडे पुण्णेऽपाबहुगं होजाइ कोहमायालोहाणं तव्व बंधो वि ॥ ६१ ॥
अटारसपयाणं ।
कोहाईण भपुव्वाइं फड्डाई विसेसअहियाई ।।७४।। रसखंड कोहाईण कमेण विसेसभहिअमह ।
(उद्गीतिः) घाइअ-ऽवसेसफडाइं लोहाईण ऽणंतगुणणाए ॥६२।।
तत्तो एगदुगुणहाणिफड्डगाई असंखगुणिमाणि ।
(उद्गीतिः) संजलणजहण्णगपुवफडगत्तो अणंतगुणहीणं ।
तत्तो अणंतगुणिआ इगफडगवग्गणा होन्ति ।।७।।
तत्तो य वग्गणा कोहअपुधगफगाणऽणंतगुणा । करए उक्कोसमपुवफडगं तं कयं न पुव्वं ति ।।६३।।
माणाईण अपुव्वगफड्डाणं वग्गणा विसेसऽहिआ।।७६।। (गीतिः)
(गीतिः) ताणि अपुघ्वाणिगदुगुणहाणिफड्डाणऽसंखइमभागो।
लोहस्स पुव्वफडाणि अणंतगुणाणि वग्गणा सिं च । एत्थ पुण भागहारो ओकड्ढणओ असंखगुणो ॥६४॥
एवं जाव अणंतगुणा कोहस्स खलु वग्गणा होति ।।७।। सो पुण असंखभागो पल्लपढमवग्गमूलस्स ।
(गीतिः) कमसो अपुव्वगाणाइवग्गणाऽस्थि य विसेसऽहिआ चरिमे समये मोहस्स अट्ठवासपमिओ हवइ बंधो।
॥६५॥ (उपगीतिः)
इयराण संखवाससहस्साई भणिमु ठिइसंतं ।। ७८ ॥ कोहाईण अपुव्वाणि फडगाइं अणुकमेण ।
घाईण संखवाससहस्साणि पराण उण असंखसमा। कुरगए विसेसअहियाई पदमखणे य अस्सकण्णस्स
एवं हयकण्णकरणअद्धं खलु परिसमावेइ ॥७९|| ॥६६।। ( उद्गीतिः )
पुण्णे हयकपणे आढवेइ किट्टिकरणं तम्मि । भणुभागे चरिमभपुव्वाण हवइ पढमवग्गणा तुल्ला।
निव्वत्तइ पुवापुठ्वफडगत्तो य किट्टीओ ।। ८०॥ लोहाईण अणूए भविभागा खलु विसेसअहियकमा।
(उपगीतिः) ॥६७।। (गीतिः)
जेट्ठा किट्टी उ अणंतगुणूणा पढमवग्गणाहिंतो। देइ अपुव्वेसु विसेसूणकमेणं दलं तो देह ।
किट्टीओ फडुस्स अणंतिमभागामिआ होति ।।८।। पुवाईअ असंखगुणूणं सेसासु उण विसेसूणं ॥६८।।
एगेगस्स कसायरस तिण्णि तिषिण अहवाऽणंता । (गीतिः)
संगहकिट्टी तिन्नि अवंतरकिट्टी अणंताओ ॥ ८२ ॥ दीसइ दलिअं पुव्वापुव्वेसु फड़गेसु गोपुच्छेणं ।
(उपगीतिः) पुवाईअ अपुयाइत्तो दीसइ असंखभागविहीणं कोहाईणं उदयेणं पडिवनस्स कमसो हि ।
॥६९॥ (मार्यागीतिः)
पारस णव च्छ तिण्णि य संगहकिट्टीउ जायन्ते । पढमसमये अपुव्वाणि फडगाइ भणंतभागमिआई।
॥८३॥ (उपगीतिः) हेहाणि पराण उदिग्णाई बंधो तहेवऽणंतगुणूणो
एगेगाए संगहकिट्टी अवंतराभ उ भणंता । mo (भायोगीतिः) । तिहिरीयोपटममयसमवगणहीणाओ।
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