Book Title: Khavag Sedhi
Author(s): Premsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 731
________________ ५७२ ] प्रथमं परिशिष्टम् [ मूलगायाः पडमसुहुमाउ चरिमं जावं दीसइ दलं विसेसूर्ण।। चरिमे खंडे ण? उ णस्थि मोहस्स ठिइघाओ। तो य असंखगुणं बायरपढमाअ उवरिं विसेसूणं । ठिइसंतं पुण सुहुमद्धापमिश्र होइ मोहस्स ॥२१४।। ॥२००॥ (गीतिः) (उपगीतिः) जा आवलितिगसेसा पढमठिई ताव संकमेइ दलं। समयाहियआवलिसेसम्मि ठिइउदीरणा जहण्णंते। बीयत्तो तइयार तओ परं संकमेइ सुहुमासु ॥२०१।। तिण्डं घाईणं बंधो तह संतं मुहुत्तंतो ॥२१५।।।। (गीतिः) णामदुगस्स अडमुहुत्ता तह तइयरस बारसमुहुत्ता । खणअहिश्रावलिसेसाए बिइयातइयगाण सव्वदलं । बधो संतं तु अघाईण असंखेज्जवासाणि ॥२१६।। संकामइ सुहुमासु वज्जिय णवबद्धमावलिगयं च खविआ एगारस किट्टी अणुहवणेण संकमेणं च । ॥२०२।। (गीतिः) दुखणूणदुआवलिया य संकमेणऽणुहवेण सुहुमाओ लोहस्स मुहुत्तंतो बंधो घाईण दिवसंतो । ॥२१७।। (गीतिः) इवह अघाईणं वासंतो अह भणिमु ठिइसतं ।।२०३।। सुहुमगकिट्टीवेयणकालत्तो जाव कोहपढमाए । (उपगीतिः) वेयणकालं कालो अहिओ पच्छाणुपुवीए ॥२१८।। लोहस्स मुहुत्तंतो संखसहस्सबरिसा य घाईणं । माणाईहिं चडिआणं पढमठिई उ माणपहुडीणं । होज्जेइ अघाईण उण असंखेजबरिसा चरिमे ॥२०४॥ कोहाइएगदुतिखवणद्धाजुअकोहपढमठिइमाणा सेकाले सुहमगुणहाणं पडिवजए तयाणि च । ॥२१९।। (गीतिः) गुणसेटिं करइ सुहुमकिट्टी उकिरिय वेयइ य ॥२८५।। इगदुतिखवणं किच्चा कमेण हयकपणकिट्टिकरणाई। सुहुमगुणत्तो गुणसेदीणिक्खेवो विसेसअन्भहिओ। माणाईहिं चडिओ करइ विणासइ तओ सेसं ॥२२०।। तत्थ असंखगुणकमेणं णिखिविज्जा पसग्गं ।२०६। इत्थी खलु पुरिसुदयेणं पडिवन्नस्स इथिखवणांतं । चरिमाउ भसंखगणं अंतरआइम्मि ताउ य विसेसण। पढमठिइ ठावेइ अवेआ सत्त जुावं विणासेइ ज्वरि तभी बीयाइम्मि ताउ सखगुणहीणयं तो हीण ॥२२१।। (गीतिः) ॥२०७॥ (आर्यागीतिः) संढो ठावइ पढमठिई इत्थीपढमठिइमिभं खवइ । पीसह मंतरपदम जाव दलमसंखगुणकमेणं तत्तो। वेअदुगं जुगवं अवगयवेओ सत्त परिखवइ ।।२२२।। हीणकमेणं बीयाइम्मि असंखगुणमुवरि उ विसेसूणं इत्थीसंढाणं पुरिसस्स जहण्णो न होइ ठिइबंधो। ॥२०८॥ (आर्यागीतिः) सेसं तु पुरिसवेअव्व भासि वेअणाणत्तं ।।२२३।। बीयाइट्ठिाघायेसु गुणसे ढि उबरिल्लपढमणिसेगं । सेकालेऽवगयकसायगुणं लहए स पत्तइक्खायो। जावं दिजतं दीसंतं च भसंखगुणकमा तोहीणं ।२०९। । ठिइरसरहियं तइयं बंधइ पयइप्पअसेहि ॥२२४॥ (आर्यागीतिः) होज्जा पव्वव्व छकम्माणं ठिइरसविधायगुणसेढी। मुहुमद्धा थोवा तत्तो गुणसेढी विसेसअब्भहिआ। दलिअं पडुच्च गुणरोढिनिज्जरा उण असंखगुणा ।।२२५।। तत्तोऽन्तरं पढमखंडं तह संतं कमेण संखगुणं सम्मि संखभागे खीणकसायस्स हणइ झाणेण । ॥२१०। (गीतिः ) अन्तिमखंडेणं तस्स उवरिमठिइं तिघाईण ।।२२६।। हुमाण हेट्ठिमा उवरिल्लाअ असंखभागमेत्तीओ। कम्मखयकारणं झाणं दुविहं धम्मसुक्कभेअत्तो । न अणुहविज्जन्ते सेसा वेइज्जति किट्टीओ ॥२११।। एक्केक्कं होइ चउविहं णायव्वं पवयणत्तो ।।२२।। हेढिल्ला अणुदिण्णा थोवा तत्तो विसेसअहिआओ। चरिमे खंडे उक्किण्णम्मितिघाईणणत्थि ठिइघाओ। स्वरिल्ला तत्तो य असंखेज्जगुणा उदिण्णाओ समयहिआवलिरोसे हस्सठिइउदीरणा तिघाईणं ॥२१२।। ॥२२८॥ (गीतिः) मुहुमद्धार संखेज्जइभागे सगे विणारोइ । वोच्छिन्ना संतुदया निददुःगस्स उ दुचरिमसमयेऽन्ते । गुणसेदिसंखभागं अन्तिमखण्डं विघायंतो ॥२१॥ णाणंतरायचउदसणाण फिटति सन्नुदया ।।२२६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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