Book Title: Khavag Sedhi
Author(s): Premsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 732
________________ मूलगाथाः ] प्रथम परिशिष्टम सेकाले पावेइ सजोगिगुणं लहइ केवलं णाणं । ( सुहुमेण कायजोगेण कमा सुहुमाणि चउमणाईणि । तह केवलं दरिसणं णिरन्तरायं च वीरियमणंतं रुम्भइ गंतूणं गंतूणं अंतोमुहुत्तं तु ॥२४६।। ॥२३०।। (गीतिः) | सुहुमं सरीरजोगं णिरुम्भमाणो अपव्वफड्डाणि । हस्सो भिन्नमुहुत्तं जेट्टो देसूणपुवकोडी से । कुणइ पढमसमया पहुडि पुवफड्डाण हेट्ठम्मि ।।२४७।। कालो अवट्ठिया गुणसेढी आयोजिकाअ परि ।।२३१॥ पञ्चगफड्डाणं पढनवग्गणाअ विरियाविभागाणं । आयोजिगाकरणमाउगम्मि अंतोमहत्तसेसम्मि । तह जीवपअसाणं ओकढिज्जा असंखंसं ॥२४८।। करए अहवा आवस्सयकरणमवस्सकरणं वा ।२३२।। कुणए अपव्वफड्डाणि मुहुर्ततो असंखगुणहाणीए । आवज्जियकरणं वा.ऽऽवज्जीकरणं तओ समुग्घायं । तह जीवपअसा उ असंखेज्जगुणक्कमेण ओकड्ढिजा कुणए जस्साउत्तो तइआईइं पहूआई ॥२३३।। ॥२४६॥ (आर्यागीतिः) दंड-कवाड-पयर-लोगपूरणाणि कमसो चउखणेसु। इह सेढिवग्गमूलस्स असंखंसो अपुवफड्डाणं । पएसा वित्थारइ बहुअसंखभागमिआ हुन्ते असंखभागो पुव्विल्लाणं पि फड्डाणं ॥२.५०।। ॥२३४॥ (गीतिः) तत्तो पुव्वाऽपुव्वेहिं फड्डेहिं कुणेइ किट्टीओ । ठिइसंतस्स असंखंसा ठिइखंडेण णासइ रसं तु । हेट्ठम्मि अपुत्राणं सेढिअसंखेज्जभागमिआ ॥२५१।। घायेइ बहुअणंतंसमिश्र अणुभागखंडेणं ॥२३५।। ओकड्ढए अपुव्वाइवग्गणाए असंखभागमिआ । बीयसमये कवाडे वित्थारइ बहुअसंखभागमिआ। अविभागे तह जीवपसाव असंखभागमिआ॥२५२॥ जीवपअसा ठिइघाओ रसघाओ य पुचव्व ।।२३६।। अंतोमुहुत्तकालमसंखगुणूणक्कमेण किट्टीओ । तइयसमये बहुअसंखभागमेत्ताऽपणो पोसा य । करए ओकड्ढइ जीवपअसे उण असंखगुणणाए वित्थारइ पयरे ठिइरसाण घाओ उ पुव्वव्व ॥२३७।। ॥२५३।। (गीतिः) वित्थारेइ चउत्थसमये बहुअसंखभागमिआ । किट्टीगुणगारो पल्लासंखंसो हवन्ति किट्टीओ । जापूरणे पएसा ठिइरसघाओ उ पुग्वव्व ॥२३८।। सेढीअसंखभागो अपव्व फडाण उण असंखंसो।।२५४।। (गीतिः) (उपगीतिः) किट्टीकरणे सम्मत्ते सेकाले विणासइ सजोगी । तइयाईणं अंतोमुहुत्तमेत्ता ठिई उ आउत्तो । स वाणि उभयफड्डाइं जोगो तस्स किट्टिगओ ॥२५५।। संखगुणा तत्तो संहरए जगपूरणाईणि ॥२३९।। पंचमसमये पयरे ठान्तो बहुसंखभागपमिठिइं । सुहुमर गुरुम्भन्तो झायइ सुहमकिरिय अपडिवाई। चरिमे समये सबाओ किट्टीओ विणासेइ ॥२५६।। नासइ रसं तु रससंतस्स बहुअणंतभागमियं ॥२४०।। चरिमसमये सजोगिस्स य अण्णयरस्स वेयणीयस्स । छट्ठखणे ठान्तो उ कवाडम्मि ठिइरसं च पुत्वव्व । ओरालियदुग तेय कम्मण-संठाणछक्काण।।२५७।। नासह ठिइरसघायद्धाखलु अंतोमुहुत्तमिआ ॥२४१॥ तह पढमसंघयणवण्णच उक्काण तह दोण्ह खगईणं। सत्तमसमये दंडे ठाअइ अट्टमखणे सरीरत्थो । अगुरुलहुयउवघायपरघानिम्माणणामाणं ॥२५८।। पढमट्ठमसमयेसु जोगो ओरालिओ होइ ॥२४२।। । पत्तेथिराथिरणामाण तहसुहासुहाण वोच्छिण्णो। सत्तमछट्टबिइयसमयेसु मिस्सो य कम्मणो जोगो। उदओ पुव्वं चिअ सुसरदुस्सरुस्सासणामाण ।।२५९।। तइय-तुरिय-पंचमसमयेसु निरुम्भेइ तो जोगं ॥२४३॥ | किट्टी जोगो ठिइरसघाओ णामदुगुदीरणा लेसा । बायरवयमणउस्सासकायजोगा निरुम्भइ कमेण । | बंधो तइयज्झाणं च सत्त अंतम्मि वोच्छिण्णा॥२६०॥ तत्तो सुहुमवयणमणतणु जोगा त्ति इगउवएसो।२४४। । तणतात्ति इगउवएसो।२४४।। सेकाले लहइ अजोगिगुणट्ठाणमुवयाइ झाणं च । रुम्भइ बायरमण-बय-उस्सास-तणू कमेण बीयमया। | | वोच्छिन्नकिरियमंतोमुहुत्तपमिशं च सेलेसिं॥२६१।। बायरतणूअ भिन्नमुहत्तेणऽन्तोमुहत्तमच्चासं । पुव्वरइयकम्मं खवइ असंखगुणक्कमेण गयलेसो। ॥२४५।। (गीतिः) | दुचरिमसमये संठाणअथिरसंघयणछक्कं तु ॥२६२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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