Book Title: Khavag Sedhi
Author(s): Premsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 730
________________ मूलगायाः ] प्रथने परिशिष्टम् वेइज्जमाणकिट्टीअ पढमसमयम्मि पुवकिट्टीए । | सेकाले पढमठिई मायातइयाउ कुणइ अणुवए । सेस दुखणूणदुआवलिबद्धं उदयआरलिगयं च | पण्णरसदिणा बंधोसंजलणदुगस्स चरिमुदयो।१८४|| ॥१६९॥ [गीतिः] | घाईणं मासपुहुत्तं इयराणं च संखबरिसाणि । बंधो उदओ णासो संकमणमपुवकिट्टिणिञ्चत्ती । | ठिइसंतं दुण्हं संजलणाणं होइ इगवासो॥१८५।। किट्टीअप्पाबहुअंपग्रेसथोव बहुरं चपढमव्व ।।१७०।।। घाइअघाईण कमा संखासंखियसमासहस्साई । (गीतिः ) सेकाले पढमठिइकुणेइ लोहपढमाउ वेयइ य।।१८६।। वेइज्जमाणगस्स कसायस्स अणुइवए उ जं किट्टि । (गीतिः) तं चेत्र बंधइ पराणं पढमं बंधए न परं ॥१७१।। चरिमे बंधो लोहस्स मुहुत्तन्तो तहेव संतं पि । चरिमे बंधो मोहस्स देसऊणा दिणा असीई उ । बंधो घाईण दिणपुहुत्तमघाईण बच्छरपुहुप्तं ॥१८७।। घाईणपुडुत्तं पर। ण संखियसहस्सवरिसाई ।।१७२।। (गीतिः) (गीतिः) घाईणं संतं संखसहस्साणि वरिसाण होज्जेइ । मोहस्स देसऊणा चउमासऽहिअपणहायणा घाईणं। तिण्ड अघाईण असंखेज्जाइ बच्छराणि खलु सखसहस्सवरिसगाई इयराणं असंखवरिसा संत ॥१८८॥ ॥१७३।। (आर्यागीतिः) सेकाले लोइबिइयमोकड ढित्तु पढमट्ठिइं तु करिज्जा। सेकाले तइयं किट्टि ओकड्ढित्तु आइमठिई तु । वेयइ ताहे लोहगबिइयातइयाउ कुणइ य सुहुम किट्टी कुणए वेयइ बीयव्व य सेसपरूवणा णेया ॥१७४।। ॥१८९।। (आर्यागीतिः) चरिमुदये संजलणाणं ठिइबंधो दुमासिओ होइ । सुहमा किट्टीको तइयाए हेट्ठम्मि कुणइ खलु खवगो । ठिइसंतं पुण चत्तारि होइ वरिसाणि मोहस्स ॥१७५॥ | ता सुहुमा कोहपढमसंगहकिट्टिव्व पण्णत्ता ॥१९०।। सेकाले माणपढमकिट्टि ओकढिऊण पढमठिइं । लोहस्स बिइयकिट्टित्तो तइयाअ तह सुहुमकिट्टीसु। कुणए वेयइ सम्बो य विही कोहपढमन्त्र णायव्यो तइयत्तो सुहुमासु संकमइ दलं न अण्णस्थ ॥१९१।। ॥१७६।। (गीतिः ) सुहुमासुतइयत्तोऽप्पं बीयाउ तइयाअ संखगुणं । चरिमुदये संजलणतिगस्स उ पण्णासवासरा बंधो। तो बीयत्तो सुहुमासु दलं संकमइ संखगुणं ।।१९२।। अंतोमुहुत्तऊणा चत्ता मासा हवइ संतं ॥१७७|| थोवा आसि अवन्तरकिट्टी कोहरढमाअ कोहखये। सेकाले माणविइयकिट्टि ओकड्ढिऊण पढमठिइं। माणपढमाअ माणे खीणे मायापढमगाए ॥१६॥ करए वेयइ अण्णो सम्बो वि विही य पुत्र्यव्य ।१७८| माथाणासे लोहपढमाअ पढमखणकयसुहुमकिट्टी। अंतम्मि मोहबंधो चत्तालीसा दिणा उ देसूणा।। कमसो अब्भहिआओ सासंखेज्जइमभागेणं ॥१९४।। संतं देसूणा बत्तीसा मासा कसायाणं ॥१७९|| करइ सुहुमकिट्टीउ असंखगुणूणक्कमेण अणुसमयं । सेकाले माणतइयांकर्टि उक्किरिय करइ पढमठिइं। पडिसमयमसंखगुणकमेण दलं देइ सुहुमासु।।१९५।। वेयइ मोहस्स उ बंधो मासोऽन्तम्मि दुवरिसा संतं पढमसुहुमाअ देइ दलं बहु उपि विसेसहीणकमेणं । ॥१८०।। (गीतिः) बायरपढमाअ असंखगुणूणं उवरिमासु य विसेसूर्ण सेकाले मायाऽऽइमकिट्टि उक्विरिय करइ पढमठिई। ॥१९६।। (आर्षानीतिः) वेयइ अण्णो सम्यो यविही पुत्रवणायव्वो ॥१८॥ बीयाइवणेसु अपुवा पुयाणऽन्तरेसु हेतु य । संजलणा गस्स उ बंधो देसूणपणवीसदिवसाई। . कुणए हे?'ऽप्पा ताउ अंतरेसु असंखगुणा ॥१९७।। चरिमे संतं देसूणवीसमासा मुणयन्वं ॥१८२॥ | देइ दलिअं अपुवसुहुमकिट्टित्तो अणंतराए उ । सेकाले पढमठिइ मायाबीयाउ करइ अणुहवएऽन्ते। | पुवसुहुमकिट्टीर हीणमसंखेज्ज नागेणं ॥१९८।। देसूणा वीसदिणा बंधोमोहस्स सोलमासा संतं । पुवाउ असंखंसाहियं अणतरअपुवकिट्टीए । ॥१८३॥ (आर्यागीतिः) - सेसासु पुवापुवासु कमेणं विसेसूणं ॥१६६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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