Book Title: Khavag Sedhi
Author(s): Premsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 729
________________ [Xoo] इङ्गसमयपबद्धस्स उ सेसेण ठिई जुआऽपगाऽगाणं । हन्ति असंखगुणा पल्लभसंखं सपआिण य असंखसा ||१४|| (आर्यागीतिः) खणभवपबद्धसेसाणि इगठिईए इगाहि कमेणं । समयाभउदयावलियं वज्जिय सवगठिई सु ।।१५२।। जाणं समयपवद्धाण सेसाणि इगट्टिईभ ते थोत्रा । दोसु महिमा भावलिअसंखंसे उ दुगुणा य जब मज्झं ॥१४३॥ (ललिता) सांणि जट्टिईए सा सामण्णा परा भसामण्णा । एगा इगाहिकमा निरन्तराऽऽवलिअसंखभागमिआ || १४४ || ( गीतिः) एक rhi थोवा ताअ कमेणं विशेसअहिभाओ । raria भागे दुगुणा तह होइ जवमज्झ । १४५।। संपइ अभव्वपाउगे भावलियाअसंखभागट्ठाणे । पल्लासंखंसो त्तिविसेसो णेयो इआणि भणिमो अण्णं ॥१४३॥ ( आर्यागीतिः) पिल्लेवणठाणाइ पल्लस्स असंखभागमेत्ताणि । rod भणति कम्मभवद्वाणम्स उ असंखंसा || १४७॥ जीवस्स जइण्णगणिल्लेवणठाणे भई अकालम्मि | पिल्लेत्रियाण समयबद्धाणाऽप्पो गओ कालो ॥१४८॥ ततो बीये अहि तत्तो तइये विसेसहिओ | पलिओ मस्स य असंखेज्जंसे होभए दुगुणो ॥१४९॥ (उपगीतिः ) ठाणअसंखंसे जवमयं पल्लस्स छेदणअसंखंसो । गुणहाणी तो असंखगुणमंतरं दुगुणहाणीणं । || १५० || ( आर्यागीतिः ) एवं भवबद्धा परं लहु पिल्लेवणट्ठाणं । गंतु असंखठाणापि एत्थ दोण्ह जत्रमज्यं ॥ १५१ ॥ ( उद्गीतिः) एग सेण अईएप्पा णिल्लेत्रिया उ समयपबद्धा । कम सो अहिया ठाणअसंखंसे य दुगुणा तहा जवमज्झं || १५२ || (आर्यागीतिः) णाणतराणि पल्लस्स छेअणअसंखभागमेत्ताणि । तो एगभंत रमणंतगुणं भणियं सुअम्मि खलु || १५३ || एगसमइयोऽणुसमयणिल्लेवणकालगो पहूओऽईओ दुगुण Jain Education International प्रथम परिशिष्टम् [ मूळगाथाः । आवलिमसंखभागे जेट्ठो आवलिअसंखंसो || १५४ || ( गाथा ) एग समयंतरेणं अप्पा पिल्लेवियक्खणपत्रद्धा कमसो अहिआ दुगुणा पल्लासंखेज भागम्मि ।। १५५ ।। जवमज्झं ठाणभसंखेज्जइभागे तद्देव भववद्धा । गुरु पिल्लेवण अंतरमसंखभागो उ पल्लस्स || १५६ ।। समम्मि पहुडिओ पल्लासंखंसखणभवपत्रद्धा । पिल्ले विज्जन्ति इगेगेणं णिल्ले विया थोत्रा ॥१५७॥ कमसो अहिभा पल्ल असंखंसम्मि दुगुणा तथा जवमज्झं । गाणंतरेहि एगंतरछे यणयाइ खलु असंखगुणाई । । १५८ ।। ( आर्यागीतिः) कालोऽपो तभो इगे समये । णिल्लो त्रिया उ भवबद्धा तत्तो य समयपबद्धा ॥ १५९ ॥ तो खणपत्रद्धसेस यरहियठिई ताउ वग्गमूलं च । पल्लरस तो पभेसगुणहाणिठाणंतरं तत्तो ॥ १६० ॥ भवद्वाणं णिल्लवणठाणाई कमा असंखगुणाई । समयपत्रद्धाणं णिल्लवणठाणाणि उण विसेसहिआइ ||१६|| ( भार्यागीतिः) अणुमयभवेयणकालोऽसंखगुणो उखणपबद्धस्स । तोकम्मठिईए तोऽणुसमयवेयणअनेहो || १६२|| ता अवेयणकालो सन्वो तो सवगो उ वेयणकालो । कमसो य असंखगुणो तो कम्मठिई विसेसअहिया होज्जा ॥ १६३ ॥ (आर्यागीतिः) जादुचरिमसमग्रमसंखगुणूणक्रमेण कोइपढमाए । खणा बंधअसंखभागपमिया ता ।। १६४॥ (गीतिः) ताइटिई दुआ लिसेसयाभ आगालो । छिष्णो खणुत्तरावलि से साथ जहष्णुदीरणाऽन्तुओ ॥१६५॥ (गीतिः) तत्तणा बंधो मोहस्स सयदिणा घाईणं । अंतोमुहुत्तीणा दसवासा संखवासपनि भोऽन्नाणं ॥१६६॥ ( आर्यागीतिः ) संतं मोहस्संतो मुहुत्त होणअडमासहिगछद्दा | घाईघाईण कमा संखासंखवरिसा णेयं ॥ १६७ सेकाले ओढत्तु विइकिट्टि कुणेइ पढमठिहं । ता चैव स वेयइ बी कोइस्स किट्टि तु ॥ १६८ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786