Book Title: Khavag Sedhi
Author(s): Premsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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५६८ ] प्रथमं परिशिष्टम्
[ मूलगाथाः दलिअंतु पडिखणं उक्किाइ असंखगुणिनं च किट्टीणं ।। लोहस्स जहण्णगकिट्टित्तो कोहस्स जेट्ठकिट्टीए । अह किट्टीणं अणुभागप्पाबहुअं भणिज्जेइ ॥ ८५॥ । दलिअं परंपराअ वि दिज्जेइ विसेसहीणं हि।।९९॥ लोहस्स पढमसंगहकिट्टीअ जहण्णगाअ खलु ।। दलिअंतुदिस्समाणंलोहजहण्णाउ पहुडि कोहस्स । थोवा रसाविभागा तत्तो बिइयाअऽणंतगुणिआऽस्थि । उक्कोसं किट्टि जाव विसेसूणक्कमेणऽस्थि ।।१००।।
॥८६॥ (उद्रीतिः) किट्टी कुणमाणो ओवट्टइ मोहस्स ठिइरसा णियमा। एवं जाव चरमकिट्टीए बीयपढमाअऽणंतगुणा । सो य न उबट्टइ ओवट्टइ उबट्टइ परो उ ॥१०१।। पुत्रव्व जाव अंतिमकिट्टीए ताउ तइयाए ॥८॥ । बीयाइखणेसु असंखगुणकमेणं दलं तु घेत्तूणं । पढमाअऽणतगुणिआ जाचं चरिमाम एवं च । कुणइ अहो संगहकिट्टीण अपुव्वा असंखगुणहीणा मायाए तिण्हं किट्टीसुणेया अणंतगुणणाए ।1८८ |
॥१०२।। (गीतिः) (उद्गोति.)
देइ अपुव्वंतत्तो पुवाईए असंखभागूणं । तत्तो माणगकोहाणं तिण्ह रसाविभागा य ।
पुबंताउ अपुवाईअ असंखंसउत्तरं दलिअं॥१०३।।
(गीतिः) कमसो उ जाव कोहुक्कोसाए होजऽणंतगुणा ।।८६||
सेसासु विसेसूणं तेणं तेवीसउट्टकूडाणि ।
(उपगीतिः) अह संगहकिट्टीअंतराण तहऽवंतरंतराण खलु ।
होन्ते दीसइ दलिअंसव्वत्थ अणंतभागूणं ॥१०४।। भणिहामो अप्पाबहुअं जं अस्थि सुअअणुरूवं ॥९॥
नरतिरियइगपणिदितसदुओरालियसरीरजोगेसु । तत्थ य लोहपढमऽवंतरकिट्टीअंतराउ आढविऊणं ।
मणवयजोगचउके नपुचउकसायमग्गणासु च कोहचरिमऽवंतरकिट्टिअंतरं जावऽणतगुणिअं णेयं
॥१०५।। (गीतिः) णाणाणाणदुगाविरइसामइअचक्खुदुगछलेसासु । ॥९शा (आर्यागीतिः)
भवमिच्छवसमवेयगखाइमसम्मेसु सण्णिइयरासु तो लोहस्स पढमसंगहकिट्टीअंतरं अणतगुणं ।
॥१०६।। (गीतिः) तो बीयअंतरमह तइयकिट्टीअंतर अणंतगुणं ॥९२।।
आहारम्मि य बद्धपत्रेसा होगन्ति णियमत्तो । (गीतिः)
किट्टीकाराणं किट्टिवेअगाणं च संतम्मि ॥१०॥ अह लोहगमायाणंतरं अणंतगुणिनं तहेवियराणं ।
(उपगीतिः) कोहचरिमाउ लोहअपुवाइमवग्गणान्तरं विण्णेयं ।
निरयसुरविगलपुढवीजलानलपत्रणवणस्सईसु तह।
॥९३।। (आर्यागीतिः) अह संगहकिट्टीणं पसअप्पाबहुत्तं तु ।
वेउव्वाहारगदुगकम्मणजोगिस्थिपुरिसवेसु।।१०८॥
(गीतिः) माणस्स पढमसंगहकिट्टीअ पसगा थोवा ।। ९४ ।।
ओहिविहंगमणेसु तह देसविरइपरिहारछेसु। (उपगीतिः)
ओहिगदंसणमिस्सासायणणाहारगेसु तत्तो बीयाए उ विसेसऽहिया होन्ति माणस्स ।
भयणाए
॥१०९।। (गीतिः) तो तइआए अहिआ तो कोहस्स बिइयाअ भन्भहिआ
केवलदुगअभवियसुहुमअहक्खायेसु णियमत्तो । ॥९५।। (उद्गीतिः)
बद्धपोसा णत्थि य संते संभवभभावत्तो ॥११०।। तो तइआए अहिआ तो मायाएऽहिआ कमा तीसु ।
(उपगीतिः) तो लोहस्स कमेणं तीसु विसेसाहिआ तत्तो ॥९६।।
सायासायेसु पज्जत्तापज्जत्तगेसु च । कोहस्स पढमसंगहकिट्टीए होति संखगुणा ।
एगिदियाण य असंखिज्जेसु भवेसु णियमत्तो॥१११।। एवमवंतरकिट्टीणऽप्पाबहुअं मुणेयव्यं ॥९७||
(उपगीतिः) (उपगीतिः) एगुत्तरवुड्ढीए संखतसभवेसु बद्धदलमस्थि । लोहजहण्णगकिट्टिपहुडिकोहुक्कोसकिट्टिअंतासु । संतम्मि सबलिंगेसु कम्मसिप्पगुठिइरसेसुवा सवासुदेइ दलं विसेसहीणक्कमेण खलु ॥९८॥ ।
॥११२।। (गीतिः )
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