Book Title: Khavag Sedhi
Author(s): Premsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
View full book text
________________
५६६ ]
प्रथमं परिशिष्टम्
[ मूलगाथाः एग-दिवड्ढ-दु-पल्लाणि वीसगाणं च तीसगाणं च। मोहस्स संखवरिसा बंधो इगठाणिआ य बधुदया। मोहम्स य परिवाडीअ दुगस्त उ संखगुणहीणो॥२१॥ तस्सेव आणुपुत्रीसंकमणमसंकमो य लोहस्स॥४४|| संखं लेगतिभागुत्तरपल्लाइ खलु वीसगाईणं ।।
(गीतिः) ताउ परं तीसाणं तहेव संखेज्जगुणहीणो ॥३०॥ तह आवलिगासु छसु उदीरणा संढवेअखवणा य। मोहस्स पल्लमेत्तो सेसाणं पल्लसंखभागमिओ।। कयअंतराण सत्तऽहिगारा जुगवं पयट्टते ॥४५॥ ताउ पर सव्वेसिं कम्माणं संखगुणहीणो॥ ३१ ॥ । कयअंतराण मोहस्स बंधुदयसंकमा रसे होन्ति । पुणे बंधेडणुकमं तु वीसगाईण संखगुणो। । कमसो अणंतगुणसेढीए अह ते दले भणिमो ॥४६।। तो बीसगाण जायइ पलियअसंखेज्जभागमिओ॥३२॥ होन्ति पअसे कमसो बंधउदयसंकमा असंखगुणा ।
(उपगीतिः) सेकाले सेकाले रसबंधुदया अणंतगुणहीणा ॥४७॥ तो तीसगाण पल्लस्स असंखंसो तओ य मोहस्स ।
(गीतिः) पल्लअसंखंसोऽन्तोलक्खं संतं च सत्तण्हं ।। ३३ । । रससंकमो उ खण्डे पुण्णे होजइ अणंतगुणहीणो। ताउ असंवगुणो एकाहारेणेइ तीसगाण अहो। सेकाले सेकाले पसबंधो चउविहो य ॥४८|| मोहट्ठिइबंधो तो वीसाहेट्ठा कमा असंखगुणो ||३४|| | सेकाले सेकाले पसउदयो असंखगणो ।
(गीति:
सेकाले सेकाले दलसंकमणं असंखगुणं ॥४९।। तो वेअणिज्जबंधो सेसाणं तीसगाण उवरिं तु ।
(उपगीतिः) तो सेसतीसगाणं ठिइबंधो वीसगाण अहो ।।३५।। संवइ बहुगो उदयो तत्तो बंधो-ऽत्थि ताउ अणुभागे। ताहे वीसगबंधा तइयस्स विसेसअहिगो खु । सेकाले उदयो तत्तो बंधो-ऽणंतगुणहीणो ॥५०॥ एवंकमेण गच्छह बंधो अह भणिम ठिउसंतं ॥३६॥
ठिइखंडेसु गयेसु संढं सव्वं खवेइ तत्तो थिं । (उपगीतिः)
खवणद्धासंखंसे बंधो संखबरिसा तिघाईणं ॥५१।। तत्तो असण्णितुल्लं ठिइसंतं ताउ बंधच ।
(गीतिः) ता णेयं जावंतप्पबहुत्तं खलु ण पाविज्ज ॥३७॥
तत्तो ठिइखंडपुहुत्तेणं इतिथं खवेइ णिस्सेसं । (उपगोतिः)
ताहे संतं मोहस्स संखवासपमिश्र होइ ।।५२।। चरिमप्पबहुत्ताउ असंखखणपबद्भुदीरणा होइ । तोऽटुकसाया खत्रए जहण्णठिइसंकमो चरिमे ॥३८॥
सेकाले खवए सत्तणोकसायेऽपबहुरं च । तो थावरतिरिनिरयायवदुगसाहारणेगविगलाई ।
मोहस्स टिइबंधो थोवो घाईण संखगुणो ॥५३॥ थीद्धिति च खवइ तो बंधइ देसघाईणि ॥३॥
(उपगीतिः) दाणंतरायमणपज्जवाण तो लाभओहिदुगकम्माणं ।
तो वीसाण असंखगुणो तो तइयस्स खलु विसेसहिओ। तो सुअअचक्खुभोगाण तओ चक्खुस्स अवभोगमईणं
ठिइसंतं मोहस्सऽप्पं घाईणं असंखगुणं ॥५४||
॥४०॥ (आर्यागीतिः) तो वीसाणअसंखगुणं तो तइयस्स खलु विसेसऽहिअं तो वीरियस रसबंधो हवए देसघाई उ। खवणद्धासंखसेऽघाईणं संखवासिगो बंधो ।।५।। तो तेरसपयडीण-ऽन्तर कुणेइ ठिबंधकालेण ।।४।।
(गीतिः) (उद्गीतिः) खवणाद्धासंखंसेसु संतं संखवासिअं घाईणं । भिन्नमुहुत्तं उदियाणं आवलिया पराण पढमठिई।। आगालो पडिआगालो सेसे आलिगादुगे वोच्छिन्ना संढत्थीण समाऽप्या पुरिसाईण कमसो विसेसऽहिया
॥५६।। (आर्यागीतिः) ॥४२।। (गीतिः समयाहिअआवलिसेसाअ जहण्णा उदीरणा होइ । सुदयाणं पयडीणं पढमठिईए खिवेइ उक्किण्णं । । चरिमे समयूणदुआवलिबद्धं तहुदयट्टिई सेसा ॥५॥ दलिअं बझंतीण अबाहुवरिमबीयगठिईए ॥४३॥
(गीतिः)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786