Book Title: Khavag Sedhi
Author(s): Premsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 724
________________ प्रथमं पशटम - क्षपकश्रेणिमूलगाथाः :: पणमिअ सिरिपासजिणं सुरअसुरणरिंदवंदिअंणाहं।। खंडइ अणंतभागा रसस्स णत्थि य सुहाण रसघाओ। वुच्छामि खवगसेढिं सपरहिअटु गुरुपसाया।। । । एक्केक्कम्मि ठिइविधाये रसघाया सहस्साई ॥१६॥ तत्थ य णव अहिगारा अहापवत्तकरणं तह हवेइ। बंधो अंतोकोडाकोडी सत्ताउ संखगुणहीणो । करणमपुव्वं हवए सवेअअणियट्टिकरणं च ॥२॥ पुण्णे ठिइबंधे अण्णो होज्जइ पल्लसंखभागोणो ॥१७॥ हयकपण-किट्टिकरण-तयणुहव-अवगयकसायअद्धा य । (गीतिः) तह अस्थि सजोगिगुणट्ठाणमजोगिगुणठाणं च ।।३।। गुणसेढीए आयामो हवए करणदुगऽहिओ गलिओ। अणचउगं दिट्ठितिगं च खविय उज्जमइ सेसखवणाए खिवइ दलं कम सो घेत्तूण-ऽणुसमयं असंखगुणणाए आढवइ अप्पमत्तो अहापवत्तकरणं समणो ||४|| ॥१८।। (गीतिः) परिणामटाणाई अणुसमयमसंखलोगमेत्ताणि । उबट्टणाअ खु असंखगुणा ओवट्टणा तओ सत्ता । उड्ढमुहाऽणंतगुणा सोही तिरिया उ छट्ठाणा ॥५॥ जं उक्किण्णस्त असंखंसो उठ्वट्टणाअ होएइ ॥१९॥ करणस्स पढमसमये सव्वत्थोवा जहणिया सोही। (गीतिः) तो पढमसंखभागं जाव जहपणा अणंतगुणा ॥६॥ पढमसेऽपुव्वस्स उ बे णिद्दा सुरगइप्पभिइतीसा। तत्तो पढमे समये उक्कोसा होअए अणंतगुणा।। छट्ठसे हासरइभयदुगुच्छाऽन्ते य बंधत्तो।। २० ॥ तो उत्ररि पढमसमये होइ जहण्णा अणंतगुणा ।।७।। वोच्छिज्जति छ हासाई उदयत्तो य ठिइबंधो। एवं हे? उवरि य जाव जहण्णाऽत्थि चरिमसमयम्मि पढमसमयओ चरिमसमयम्मि संखेज्जगुणहीणो तत्तो सेमुक्कोसा कमेण हुन्ते अणंतगणा ॥८॥ ॥२१।। उपगीतिः) मणधयणोरालाणं जोगे वट्टेइ अण्णयरे । जं ठिइसंतं अंतोकोडाकोडी अपुव्वआइखणे। सुअउवजोगे मइसुअचखुअचक्खूसु वा इगकसाये तं संखेज्जगुणूणं अंते संखठिइघायेहिं ॥ २२ ।। ॥९॥ (उद्गीतिः) पुरिसाईणं वे अण्णयरम्मि य विसुज्झयरसुस्काए। सेकाले अणियट्टि णासेउ आढवेइ ठिइखंडं । पयइठिइरसपअसा पडुच्च णेयाणि बन्धुदयसंताई तं हस्सत्तो संखेज्जभागअहियं तु उक्कोसं ॥ २३ ।। ॥१०।। (आर्यागीतिः) पढमखणे देसोवसमणानिकायणनिहत्तिकरणाई । सेकाले कुणइ अपुवकरणमे अम्मि होअइ विसोही । वोच्छिन्नाइं अंतोलक्खं पढमो उ ठिइबधो ॥२४॥ गोमुत्तिकमेण जहण्णा उक्कोसा अणन्तगुणा ।।१।। जं ठिइसंतं अंतोकोडाकोडी अपुव्वपढमखणे । बीयकरणपढमसमयओ ठिइघाओ सुहासुहाण तहा । होज्जा तं अंतोकोडी अनियट्टिपढमखणम्मि ॥२५।। गुणसंकमो असुहपयडीणं अणुभागघाओ य ॥१२॥ पढमे ठिइखंडे पुण्णे तुल्लं हवइ संतकम्मं तु । अण्णो य द्विइबंधो गुणसेढि त्ति अहिगारपंचतयं । सव्वेसिं जीवाणं ठिइखंडं च वि हवइ तुल्लं ।।२६।। जुगवं पयट्टइ तओ णाम अनुवकरणं अस्थि ॥१३॥ उकोसं ठिडखण्डं पि पल्लसंखेजभागमाण ख। संखठिइबंधगमणे असण्णितुल्लो पहवइ ठिइबंधो। खंडइ अवरत्तो संखेजगुणं जाय तक्करणं ॥१४॥ चउतिदुएगिदियतुल्लो बंधो अंतरे य बहुबंधा ।।२७।। भसुहपयडीण दलिअंतु असंखगुणं पखिवइ अन्नासु। (गीतिः) बझंतीसु सपयडीसु अणुखणं स गुणसंकमोणेयो।१५। | ठिइबंधबहुसहस्सेसु गयेसु होइ जं तु एक्केकं । (गीतिः) । तं भणिहामो णस्थि विसेसे णियमो कहिमु बंधं ।२८। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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