Book Title: Khavag Sedhi
Author(s): Premsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 728
________________ मूलगाथा: प्रथमं परिशिष्टम् [५६९ खवगाणं संते णियमत्तो कहियदलिअं तु पट्टेइ । । जं संगहकिट्टि अणुहबए तयणंतराम इयरत्तो । सव्वठिईसुतह सव्वासु किट्टीसुणियमेणं॥११३।। । संकामइ दलिअंसंखगुणं अपबहुअंभणिमो॥१२७॥ किट्टीकरणे पुव्वापुबाई फङ्गाणि अणुहवइ । कोहबिइयतइयत्तो माणगपढमाअ माणगतिगत्तो । पढमा?ईअ आवलिंगासेसाए समत्तद्धा ॥११४|| मायापढमाए मायाअतिगत्तो य लोहपढमाए।।१२८॥ किट्टिकरणस्स चरिमे बंधो मोहस्स चउमासा । (नीतिः) अंतोमुहुत्तअहिया पराण संखियसहस्सवासाइं लोहपढमाउ तब्बिइयाए ताउ चिम तइयाए । ॥११५।। (उद्गीतिः) संकामेइ पभेसा विसेसअहिअक्कमेण तत्तो वि ठिइसंतं मोहस्सऽडवासा अंतोमुहुत्तअब्भहिआ । ॥१२९|| (उद्गीतिः) घाईण संखबरिससहस्साणि असंखवच्छराऽन्नाणं कोहपढमाउ माणपढमाअ संखेज्जगुणिआ तो । ॥११६।। (गीतिः) तइयाअ विसेसहिआ तो संखगुणा य कोहबिइयाए तत्तो य कोहपढमं ओकड्डित्तुं करेइ पढमठिइं । ॥१३०।। (उद्गीतिः) वेयइ बंधो मोहस्स उ चउमासा पराण पुवुत्तो बंधपोसा णिव्वत्तए अपुत्रा अवन्तरा किट्टी । ॥११७।। (गीतिः) पढमाण चउण्ह अवन्तरकिट्टीअंतरेसु तु ॥१३१॥ वेइज्जमाणकिट्टी दलमसंखगुणणाअ पढमठिईए। गंतूण असंखगुणिअपल्लपढमवग्गमूलठाणाणि । चरिमणिसेगा बीयपढमे असंखगुणमुवरि उ विसे- एगिगबंधअपुध्वं किट्टि खलु किट्टिअंतरे कुणइ सूणं ॥११८।। (आर्या गीतिः) ॥१३२।। (गीतिः) वेइज्जमाणकिट्टीए सव्वठिईसु होन्ति सव्या किट्टी । बंधाइपुवकिट्टी पसगं बहु देइ । नवरं उदये खलु मज्झिमाथि सव्वापराणबिइयठिईए । तत्तो विसेसहीणकमेण जा हेहिमा अपुवाए ॥११९।। (आर्यानीतिः) ॥१३३॥ (उद्गीतिः) ठिइसंतं मोहस्स वरिसट्ठ देसघाइ रससंतं । तत्तो अयुवकिट्टीअ अणंतगुणं सओ दलिभं देइ । णरं सम पूणालि गए कोहस्स सव्वघाइ भवे पुवा अणंतगुणूणं एवं जाव बंधचरिमकिट्टी ॥१२०।। (गीतिः) ॥१३४।। (रिपुच्छन्दः) कोहाइपढमसंगहकिट्टीए बहुअसंखभागमिआ । कुणर वज्जिय कोहपढमं तु एगारसाण हेटुम्मि । मज्झिमकिट्टी बझंते वेइज्जति कोहपढमाए ॥१२१।। तहऽवंतरकिट्टीअंतरेसु संकमदला अपुवाओ॥१३५।। . (नीतिः) (गीतिः) कोहपढमाअ हेट्ठिमणुभया थोवा तो हविज्जंति । संकमओ णिव्यत्तिज्जमाणकिट्टीसु सगहंतरजत्तो । अहिमा हेट्ठिमुदिण्णा तो उबरिल्लअणुभया अहिआ होति अवंतरकिट्टी अंतरजाओ असंखगुणिआऽपुव्वा ॥१२२॥ (गोतिः) ___॥१३६।। (आर्यागीतिः) तत्तो उवरिमुदिण्णा विसेसअहिया हवन्ति तत्तो वि। संगहअंतरजासु णिखेवो किट्टिकरणव्य बंधव । होति असखेज्जगुणा उभयाउ अवन्तरा किट्टी।।१२३।। परजासु पल्लमूलासंखंसो अंतरं णवरं ॥१३७।। मोहस्सऽणुभागाण अणुसमयोवट्टणा गुरू किट्टी । गोमुत्तिया उदये बधेऽणुखणं अणं गुणहीणा ।१२४॥ कोहगबद्धदलं पंचमावलिया सव्वकिट्टीसु । (गीतिः) माणाईण वि बद्धदलिअं जहासंभवं णेयं ॥१३८॥ गोमुत्ती पडिखणं बंधे उदये अणंतगुणहीणा । । उदयठिईए छण्हं आवलियाणं हवन्ति अच्छूटा। हस्सा णासइ संगहकिट्टीणुवरिमअसंखंसं ॥१२५॥ | समयपबद्धा छूढा सेसा तह सव्व भवबद्धा ।।१३९।। संगहकिट्टीग दलं हेटे संकामए ण उण उधि । एगठिईभ इगाहियकमेण खलु समयभवपबद्धाणं । संकामइ तास दलं तावंजाव साहेहिमापढमा॥१२६।। होज्जन्ति सेसगाई जेद्वाउ पलियअसंखभागस्स (गीतिः) ॥१४०।। (गोतिः) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786