Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो का जैन पुरातत्त्व विद्याधर के पश्चात् कलचुरियों और मुसलमानों के आक्रमणों के कारण चन्देल शक्ति का पराभव प्रारम्भ हो गया। चन्देल शक्ति के पराभव के साथ ही खजुराहो का राजनीतिक महत्व भी कम हुआ। सामरिक आवश्यकताओं के कारण चन्देलों को अपनी राजनीतिक गतिविधियां महोबा, अजयगढ़ और कालिंजर के दुर्गों पर ही केन्द्रित करनी पड़ी। राजनीतिक स्थितियों में परिवर्तन के बाद भी खजुराहो में मन्दिरों और मूर्तियों के निर्माण का क्रम नहीं टूटा और लगभग १२वीं शती ई० के अन्त तक मन्दिरों और मूर्तियों का निर्माण होता रहा । विद्याधर के पश्चात् क्रमशः विजयपाल (ल० १०२९-१०५१ ई०), देववर्मन् (ल० १०५१ ई०), कीर्तिवर्मन् (ल० १०७०-१०९८ ई०), जयवर्मन् (ल० १११७ ई०), पृथ्वीवर्मन् (ल० ११२५ई०), मदनवर्मन् परमर्दिदेव (ल० ११६६-१२०१ ई०) एवं त्रैलोक्यवर्मन् आदि शासक हुए । इनमें मदनवमन् और परमदिदेव ही राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थे । खजुराहो में देव-मूर्तियों के निर्माण और प्रतिष्ठा की परम्परा मदनवर्मन् के शासनकाल (११५८ ई०) तक चलती रही, इसके स्पष्ट पुरातात्विक प्रमाण हैं। इसी अवधि में वामन, आदिनाथ, जवारी, चतुर्भुज तथा दूलादेव (१२वीं शती ई० का पूर्वाध) आदि मन्दिरों का निर्माण हुआ। ये मन्दिर आकार में पूर्व मन्दिरों की अपेक्षा छोटे किन्तु खजुराहो की कलात्मक गतिविधियों की निरन्तरता के साक्षी हैं।
खजुराहो के मन्दिर ___ चन्देल शासकों ने भारतीय स्थापत्य एवं मूर्तिकला के विकास में अभूतपूर्व योगदान किया। शासकों ने अपने साम्राज्य को सरोवरों, राजप्रासादों, मन्दिरों एवं मूर्तियों से पूरी तरह अलंकृत रखने की चेष्टा की। इनकी कलात्मक गतिविधियां खजुराहो, उर्दमऊ, महोबा, कालिंजर, अजयगढ़, मोहान्द्रा, जसो, बानपुर, अहार, देवगढ़, सेरोन, चन्देरी, थूबौन, चांदपुर, दुधइ एवं मदनपुर आदि क्षेत्रों से सम्बन्धित रही हैं। किन्तु चन्देलों की कलात्मकता निःसन्देह खजुराहो के मन्दिरों एवं उन पर आलेखित मूर्तियों में ही श्रेष्ठतम स्तर पर अभिव्यक्त हुई।
___ मंदिरों एवं मूर्तियों के निर्माण में शासकीय समर्थन एवं संरक्षण का विशेष महत्व होता है । इस समर्थन की पृष्ठभूमि में शासकों की धार्मिक आस्था की निर्णायक भूमिका होती है । चन्देल शासक प्राचीन भारतीय परम्परा के अनुरूप ही धर्म सहिष्णु रहे हैं। यही कारण है कि चन्देल शासन क्षेत्र के अन्तर्गत ब्राह्मण धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों के साथ ही जैन एवं बौद्ध' कलावशेष भी दिखाई देते हैं। चन्देल शासक व्यक्तिगत स्तर पर शैव तथा वैष्णव धर्मावलम्बी थे । खजुराहो के कन्दरिया महादेव, विश्वनाथ, लक्ष्मण, वराह एवं चतुर्भुज मंदिर इसके साक्षी हैं।
१. महोबा से १० वीं-११ वीं शती ई० की कुछ बौद्ध मूर्तियाँ मिली हैं। इनमें तारा, सिंह
नाथ लोकेश्वर और पद्मपाणि अवलोकितेश्वर का निरूपण हुआ है । घुबेला संग्रहालय एवं पुरातत्व संग्रहालय, खजुराहो में भी दो मूर्तियाँ हैं।
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