Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो का जैन पुरातत्त्वे १०६६ ई० में अहार में एक जैन मंदिर का निर्माण हुआ। कीर्तिवर्मन् के उत्तराधिकारी जयवर्मन् के समय में महोबा में १११२ ई० में कई जिन प्रतिमायें प्रतिष्ठित हुई । मदनवर्मन् ने महोबा में ११५४ ई० में नेमिनाथ एवं ११५६ ई० में सुमतिनाथ की मूर्तियों की स्थापना की। महोबा से ११४५ ई० और ११५८ ई० की कुछ अन्य जैन प्रतिमायें भी मिली है । मदनवर्मन् के उत्तराधिकारी परमर्दिदेव (११६५-१२०३ ई०) के शासनकाल में महोबा में एक जैन मंदिर का निर्माण हुआ।' इसी के शासनकाल में ११८० ई० में अहार क्षेत्र में शांतिनाथ की विशाल खड्गासन मूर्ति भी बनी।
__ जैन कला की दृष्टि से खजुराहो निश्चित ही चन्देल शासकों के काल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण केन्द्र था। इसकी पृष्ठभूमि में खजुराहो का चन्देल शासकों की राजधानी होना था। खजुराहो के विभिन्न जिनालयों एवं मूर्तियों का निर्माण हर्षदेव, यशोवर्मन्, धंग, गण्ड, विद्याधर, कीर्तिवर्मन् और मदनवर्मन् के शासन में हुआ। पाश्वनाथ मंदिर की ब्राह्मण देव मूर्तियाँ ब्राह्मण धर्मावलम्बी चन्देल शासकों के समर्थन तथा जैन समुदाय के उदार धार्मिक दृष्टि का संकेत है । पार्श्वनाथ जैन मंदिर के विक्रम संवत् १०११ (९५४ ई०) के लेख में धंग के शासनकाल में ही श्रेष्ठि पाहिल द्वारा जिननाथ का भव्य मंदिर बनवाकर उसके लिए प्रभूत दान देने का उल्लेख है। धंग के महाराज गुरु वासवचन्द्र भी जैन थे। यद्यपि वासवचन्द्र कभी मंत्री नहीं रहे किन्तु उन्होंने अपने महाराजगुरु पद के प्रभाव का निश्चय ही उपयोग किया होगा । धंग के शासनकाल में निर्मित पार्श्वनाथ मंदिर इसका प्रमाण है। पाहिल द्वारा पार्श्वनाथ मंदिर को सात वाटिका का दान दिए जाने पर धंग ने उसका सम्मान भी किया था । यह बात जैन धर्म के प्रति धंग के उदार दृष्टिकोण को व्यक्त करती है। पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण भी पाहिल द्वारा किया था। विद्याधर के समय खजुराहो के शांतिनाथ मंदिर में शांतिनाथ की १६ फीट ऊँची विशाल प्रतिमा (१०२८ ई०) स्थापित की गई। ११७७ ई० में परमर्दिदेव के शासनकाल में भी खजुराहो में एक जिन प्रतिमा की प्रतिष्ठा हुई।
उपर्युक्त लेखों तथा चन्देल शासन के विभिन्न क्षेत्रों से जैन मंदिर एवं मूर्ति अवशेषों के साक्ष्यों से स्पष्ट है कि चन्देल राज्य के प्रायः सभी प्रमुख नगरों में समृद्ध जैनों की बड़ी-बड़ी बस्तियाँ थीं जिनका मंदिरों एवं मूर्तियों के निर्माण में पूरा आर्थिक सहयोग मिल रहा था । श्रेष्ठि पाहिल, साल्हे, जाहद, मल्हण, पाणिधर तथा उनके पुत्रों (त्रिविक्रम, आल्हण तथा लक्ष्मीधर), श्रेष्ठि बीवनशाह एवं उनकी भार्या पद्मावती तथा श्रेष्ठि देदू एवं माहुल आदि के नामोल्लेख
१. जैन, ज्योतिप्रसाद, प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलायें, दिल्ली, १९७५,
पृ० २२४-२५ । २. वही, पृ० २२४ । ३. जन्नास, ई० तथा अबुय्य, जे०, खजुराहो, हेग, १९६०, पृ० ६ । ४. एपिनाफिया इंडिका, खंड-१, पृ० १३५-३६ । ५. कृष्णदेव, “दि टेम्पुल्स ऑव खजुराहो इन सेन्ट्रल इंडिया" पृ० ४५ ।
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