Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो का जैन पुरातत्व गान्धारी-(?) (क्र० ५१७ एवं २९१) : दोनों उदाहरणों में त्रिभंग में खड़ी चतुर्भुजा देवी के करों में वरदमुद्रा, पद्म, पद्म और जलपात्र है।
लक्ष्मी : ११वीं शती ई० की इस चतुर्भुजी मूर्ति में लक्ष्मी दोनों पैर मोड़कर अलंकृत आसन पर बैठी हैं और उनके समीप ही गज की आकृति बनी है। देवी के दो हाथों में पद्म और एक हाथ में कलश हैं। ११वीं शती ई० की दूसरी मूर्ति (क्र० २३८) में ललितासीन देवी वरदमुद्रा, पद्म और कलश से युक्त हैं । देवी सम्भवतः लक्ष्मी है।
जैन युगल (क्र० ३२, ११वीं शती ई०) : इस मूर्ति में पुरुष आकृति के बायें हाथ में बालक की आकृति का कुछ टूटा हुआ भाग शेष है । मूर्ति (३' २" ४२.४" पूरी तरह खण्डित है, किन्तु नीचे कुछ उपासकों को आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं ।
द्वितीर्थो मूति (क्र० २८, ११वीं शती ई०) : यह मूर्ति (४ ४' x २' ४") ऊपर वणित द्वितीर्थी जिन मूर्ति के समान है। दो तीर्थंकरों को बिना लांछनों के कायोत्सर्गमुद्रा में सामान्य लक्षणों वाले यक्षी-यक्षी के साथ निरूपित किया गया है। इस मूर्ति में शरीर रचना अधिक सुन्दर और इकहरे बदन वाली है । मूर्ति के ऊपर किसी प्राचीन जैन मन्दिर का सिरदल भाग रखा है जिसमें तीर्थंकर के माता-पिता और सोलह मांगलिक स्वप्नों का अंकन मिलता है ।
पद्मावती यक्षी (क्र० २०९, ११वीं शती ई०) : पद्म पर ललितमुद्रा में आसीन पाँच सपंपणों के छत्र वाली पद्मावती अष्टभुजा हैं। मूर्ति (१' ७' x १' ७" में देवी का केवल एक ही हाथ सुरक्षित है जिसमें फल प्रदर्शित है । देवी के दोनों ओर वेणुवादकों की आकृतियाँ बनी हैं ।
मानसी या ज्वालामालिनी (१२वीं शती ई०, १'८"x १' ३") : अष्टभुजा देवी का वाहन सिंह है । ललितमुद्रा में आसीन देवी के हाथों में वरदमुद्रा, घण्टा, खड्ग (सिर के पीछे प्रयोग की स्थिति में) एवं खेटक प्रदर्शित हैं । जटामुकुट के रूप में देवी की केश-रचना कुछ विशेष प्रकार से अलंकृत की गयी है।
चक्रेश्वरी (क्र० २७/५०, १२वीं शती ई०) : गरुडवाहना षट्भुजा चक्रेश्वरी किरीटमुकुट के स्थान पर करण्डमुकुट से शोभित है और उसके हाथों में गदा, चक्र (प्रयोग की स्थिति में), चक्र, पद्म और शंख दिखाए गये हैं (१'७"x १' ३")।
ज्वालामालिनी (?) (क्र० १८७, १२वीं शती ई०) : ललितासीन देवी का वाहन महिष है । अष्टभुजा देवी के अवशिष्ट करों में वरमुद्रा, चक्र और गदा स्पष्टतः पहचाने जा सकते हैं । देवी के बायीं ओर तीर्थंकर की कायोत्सर्ग मूर्ति भी बनी है।
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