Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो का जैन पुरातत्व ललितमुद्रा या ललितासन या अर्धपयंकासन : जैन मूर्तियों में सर्वाधिक प्रयुक्त विश्राम का एक आसन । जिसमें एक पैर को मोड़कर पीठिका पर रखा होता है और दूसरा पीठिका से नीचे लटकता है।
लांछन : जिनों से सम्बन्धित विशिष्ट लक्षण जिनके आधार पर जिनों की पहचान सम्भव होती है।
___ वरदमुद्रा : वर प्रदान करने की सूचक हस्त-मुद्रा जिसमें दाहिने हाथ की खुली हथेली बाहर की ओर प्रदर्शित होती है और उंगलियाँ नीचे की ओर झुकी होती हैं।
शलाकापुरुष : ऐसी महान् आत्माएँ जिनका मोक्ष प्राप्त करना निश्चित है। जैन परम्परा में इनकी संख्या ६३ है। २४ जिनों के अतिरिक्त इसमें १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ वासुदेव और ९ प्रतिवासुदेव सम्मिलित हैं ।
शासनदेवता या यक्ष-यक्षी : जिन प्रतिमाओं के साथ संयुक्त रूप से अंकित देवों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण । जैन परम्परा में प्रत्येक जिन के साथ एक यक्ष-यक्षी युगल की कल्पना की गई, जो सम्बन्धित जिन के चतुर्विध संघ के शासक एवं रक्षक देव हैं ।
समवसरण : देवनिर्मित सभा जहाँ केवल-ज्ञान के पश्चात् प्रत्येक जिन अपना प्रथम उपदेश देते हैं और देवता, मनुष्य एवं पशु जगत् के सदस्य आपसी कटुता भूलकर उसका श्रवण करते हैं। तीन प्राचीरों तथा प्रत्येक प्राचीर में चार प्रवेश-द्वारों वाले इस भवन में सबसे ऊपर पूर्वाभिमुख जिन की ध्यानस्थ मूर्ति बनी होती है ।
सहरूकूट जिनालय : पिरामिड के आकार की एक मन्दिर अनुकृति जिस पर एक सहस्र या अनेक लघु जिन आकृतियाँ बनी होती हैं ।
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