Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो का जैन पुरातत्व (छ) पारिभाषिक शब्दावली अभयमुद्रा : संरक्षण या अभयदान की सूचक एक हस्तमुद्रा जिसमें दाहिने हाथ की खुली हथेली दर्शक की ओर प्रदर्शित होती है ।
अष्ट-महाप्रातिहार्य : अशोक वृक्ष, दिव्य-ध्वनि, सुरपुष्पवृष्टि, त्रिछत्र, सिंहासन, चामरधर, प्रभामण्डल एवं देवदुन्दुभि ।
___ अष्टमांगलिक चिह्न : स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, दर्पण एवं मत्स्य ( या मत्स्ययुग्म )। श्वेताम्बर और दिगम्बर परंपरा की सूचियों में कुछ भिन्नता दृष्टिगत होती है।
आयागपट : जिनों ( अईतों ) के पूजन के निमित्त स्थापित वर्गाकार प्रस्तर पट्ट, जिसे लेखों में आयागपट या पूजाशिला पट कहा गया है। इन पर जिनों की मानव मूर्तियों और प्रतीकों का साथ-साथ अंकन हआ है।
उत्सपिणी-अवसपिणी : जैन कालचक्र का विभाजन । प्रत्येक युग में २४ जिनों की कल्पना की गई है। उत्सर्पिणी धर्म एवं संस्कृति के विकास का और अवसर्पिणी अवसान का युग है । वर्तमान युग अवसर्पिणी युग है।
उपसर्ग : पूर्व-जन्मों की बैरी एवं दुष्ट आत्माओं तथा देवताओं द्वारा जिनों की तपस्या में उपस्थित विघ्न ।
कायोत्सर्ग-मुद्रा या खड्गासन : जिनों के निरूपण से सम्बन्धित मुद्रा जिसमें समभंग में खड़े जिन की दोनों भुजाएं लंबवत् घुटनों तक प्रसारित होती हैं। दोनों चरण एक दूसरे से और हाथ शरीर से सटे होने के स्थान पर थोड़ा अलग होते हैं।
जिन : शाब्दिक अर्थ विजेता, अर्थात् जिसने कर्म और वासना पर विजय प्राप्त कर लिया हो । जिन को ही तीर्थंकर भी कहा गया । जैन देवकुल के प्रमुख आराध्य देव ।
जिन-चौमुखी या प्रतिमा-सर्वतोभद्रिका : वह प्रतिमा जो सभी ओर से शुभ या मंगलकारी है। इसमें एक ही शिलाखण्ड में चारों ओर चार जिन प्रतिमाएं ध्यानमुद्रा या कायोत्सर्ग में निरूपित होती हैं।
जिन-चौबीसी या चतुर्विशति-जिन-पट्ट : २४ जिनों की मूर्तियों से युक्त पट्ट; या मूलनायक के परिकर में लांछन-युक्त या लांछन-विहीन अन्य २३ जिनों की लघु मूर्तियों से युक्त जिन-चौबीसी।
जीवन्तस्वामी महावीर : वस्त्राभूषणों से सज्जित महावीर की तपस्यारत कायोत्सर्ग मूर्ति । महावीर के जीवनकाल में निर्मित्त होने के कारण जीवंतस्वामी या जीवितस्वामी संज्ञा। दिगम्बर परम्परा में इसका अनुल्लेख है। अन्य जिनों के जीवंतस्वामी स्वरूप की भी कल्पना की गई।
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