Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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परिशिष्ट
सीन, चतुर्भुजा, करों में पद्म से युक्त तथा दो गजों द्वारा अभिषिक्त), चन्द्रमा, सूर्य, मत्स्य युगल, कलशद्वय, दिव्य झील, उद्वेलित समुद्र, सिहासन, विमान, नागेन्द्र भवन, अपार रत्नराशि, पुष्पहार एवं निर्धूम अग्नि के उल्लेख है ।' श्वेताम्बर सूची में नागेन्द्र भवन, सिंहासन तथा मत्स्य युगल के उल्लेख नहीं हैं । मत्स्य युगल के स्थान पर श्वेताम्बर ग्रन्थों के १४ मांगलिक स्वप्नों में सिंहध्वज का उल्लेख है ।।
खजुराहो में मांगलिक स्वप्न मन्दिरों की बड़ेरियों पर बने हैं । आदिनाथ एवं घण्टई मन्दिरों के अतिरित्त चार अन्य प्राचीन जैन मन्दिरों की स्वतन्त्र पड़ी हुई बड़रियों पर भी १६ मांगलिक स्वप्नों का अंकन मिलता है । मन्दिर १/४ के उदाहरण में एक पंक्ति में १६ के स्थान पर केवल ११ स्वप्न अंकित हैं। इनमें सूर्य और चन्द्र वृत्त के रूप में न होकर द्विभुज देवों के रूप में आकारित हैं । मत्स्य युगल के स्थान पर केवल एक ही मत्स्य की आकृति बनी है । लगभग सभी उदाहरणों में १६ मांगलिक स्वप्नों के अंकन के पूर्व तीर्थंकर की माता को सेविकाओं से सेवित शैय्या पर आराम करते हुए दिखाया गया है। यह माता द्वारा मंगल स्वप्नों का शिल्पांकन है। आगे की ओर एक पुरुष और स्त्री को वार्तालाप की मुद्रा में आसीन दिखाया गया है जो तीर्थंकर के माता-पिता के स्वप्न फलों से संबंधित वार्तालाप का शिल्पांकन है । आदिनाथ मन्दिर के उदाहरण में माता की लेटी हुई आकृति के ऊपर एक आकाशगामी विमान भी अंकित है। तीर्थंकर के पिता को साधु से प्रश्नफल पूछते हुए दिखाया गया है । इन आकृतियों के आगे (बाँये से दाहिने) क्रमशः १६ स्वप्नों का पंक्तिबद्ध अंकन हुआ है । सबसे पहले गज की आकृति बनी है जिसकी पीठ पर कभी-कभी दो आकृतियाँ भी दिखायी गयी हैं। इसके बाद वृषभ, सिंह और अभिषेक लक्ष्मी का अंकन हुआ है। अभिषेक लक्ष्मी दोनों पैर मोड़कर ध्यानमुद्रा में पद्मासीन और करों में अभय, पद्म, पद्म और जलपात्र के साथ निरूपित हैं। शीर्ष भाग में दो गजों को देवी का अभिषेक करते हुए दिखाया गया है। उसके बाद पुष्पहार (दो के स्थान पर एक ही हार) उत्कीर्ण है जिसके ऊपर कीर्तिमुख की आकृति बनी है, जिसके मुख से मोती की लड़ियाँ निकल रही हैं । आगे चन्द्रमा और सूर्य का एक वृत्त के रूप में अंकन हुआ है, जिनके मध्य में उनकी द्विभुज मानव आकृतियाँ बनी हैं । द्विभुज चन्द्रमा का वाहन अश्व है और उनके हाथों में अभयमुद्रा और कमण्डलु हैं ।
१. आदिपुराण (जिनसेन कृत) १२५५, १०१-१९; हरिवंशपुराण ८५८-७४ । २. कल्पसूत्र ३ ३१-४६ । ३. आदिनाथ एवं घण्टई मन्दिरों तथा मन्दिर ७ के उदाहरण सबसे अच्छे हैं।
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