Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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परिशिष्ट
(क) आदिनाथ मन्दिर के प्रवेश द्वार की मूर्तियाँ
आदिनाथ मन्दिर के प्रवेशद्वार को देवियां प्रतिमाविज्ञान परक अध्ययन की दृष्टि से विशेष महत्व की हैं । इनमें लक्ष्मी, चक्रेश्वरी, अंबिका एवं पद्मावती के अतिरिक्त कई ऐसी देवियां भी आकारित हैं जिनकी निश्चित पहचान कठिन है । यहाँ वाहनों और कुछ प्रमुख आयुधों के आधार पर उन देवियों के पहचान की चेष्टा की गई है । ये देवियां चतुर्भुजी हैं और उनकी आकृतियां अर्द्धस्तंभों से वेष्टित रथिकाओं में स्थित हैं । ललाटबिंब में गरुडवाहना चक्रेश्वरी ( अभयमुद्रा, गदा, पद्म एवं शंख से युक्त) और उत्तरंग छोरों पर सिंहवाहना अंबिका (आम्रलुंबि, पद्म, पुस्तक - पद्म एवं बालक से युक्त) एवं पाँच सर्पफणों के छत्र वाली पद्मावती (अभयमुद्रा, पाश, पद्म एवं जलपात्र से युक्त ) की ललितासीन आकृतियां हैं । चक्रेश्वरी के पाश्र्व में दो स्थानक देवियां उत्कीर्ण हैं । इनके ऊपरी हाथों में सनालपद्म और निचले में वरद मुद्रा और कमण्डलु हैं । पद्म के आधार पर इन देवियों की संभावित पहचान लक्ष्मी से की जा सकती है ।
द्वारशाखाओं पर दोनों ओर क्रमशः चार-चार देवियों की ललितासीन आकृतियां उकेरी हैं । इन देवियों के निरूपण में कोई विशेष स्वरूपगत भेद नहीं परिलक्षित होता । बायीं द्वार-शाखा की पहली देवी ( ऊपर से ) के करों में अभयमुद्रा, स्रुक, गदा (?) और कलश हैं तथा वाहन वृषभ (?) है। वृषभ वाहन के आधार पर इस आकृति की पहचान नवें तीर्थंकर पुष्पदन्त की यक्षी सुतारा से की जा सकती है । दिगम्बर परम्परा में यक्षी का नाम महाकाली है और उसका वाहन कूर्म बताया है । दूसरी मूर्ति के हाथों में अभयमुद्रा, पाश और चक्राकार पद्म हैं | वाहन के रूप में गौरैय्या (?) जैसा कोई छोटा पक्षी बना है जिसका जैन परम्परा में किसी देवी के वाहन के रूप में उल्लेख नहीं है । अतः इस देवी की पहचान संभव नहीं है । तीसरी देवी के तीन अवशिष्ट करों में स्रुक, पुस्तक - पद्म और फल हैं तथा वाहन के रूप में मृग आकारित है जो दिगम्बर परम्परा में सातवीं विद्यादेवी काली और ११वें तीर्थंकर श्रेयांशनाथ की यक्षी गौरी का वाहन है । चौथी मूर्ति का वाहन नष्ट हो गया है, किन्तु हाथों में अभयमुद्रा, चक्राकार पद्म ( दो में ) और जलपात्र सुरक्षित हैं । पद्म के आधार पर देवी को लक्ष्मी से पहचाना जा सकता है ।
दाहिनी द्वारशाखा की ( ऊपर से ) पहली देवी अभयमुद्रा, चक्राकार पद्म, पुस्तक- पद्म और जलपात्र से अभिहित है और उसका वाहन वृषभ है । पद्म-पुस्तक और कमण्डलु के आधार पर देवी को सरस्वती से पहचाना जा सकता है । पर वृषभ वाहन इस पहचान में बाधक है । दिगम्बर परम्परा में सुपार्श्वनाथ की यक्षी काली को वृषभवाहना बतलाया गया है, पर उसके
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