Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो का जैन पुरातत्त्व
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खजुराहो में अंबिका की सर्वाधिक स्वतंत्र मूर्तियाँ हैं जिनकी संख्या ११ है । ये मूर्तियाँ १०वीं से १२ वीं शती ई० के मध्य की हैं। स्वतंत्र मूर्तियों के अतिरिक्त जैन मंदिरों के उत्तरंगों पर भी अंबिका की मूर्तियाँ हैं । एक उदाहरण (पार्श्वनाथ मंदिर ) के अतिरिक्त अन्य सभी मूर्तियों में अंबिका चतुर्भुजा हैं । अंबिका के साथ सिंह वाहन तथा शीर्ष भाग में आम्रवृक्ष और करों में आम्रलुंबि और बालक के प्रदर्शन में परपंरा का पालन किया गया है। खजुराहो में द्विभुज के स्थान पर अंबिका का चतुर्भुजा स्वरूप विशेष लोकप्रिय था । यहाँ उल्लेखनीय है कि खजुराहो के अतिरिक्त अन्य सभी दिगम्बर स्थलों पर परंपरा के अनुरूप अंबिका की द्विभुज मूर्तियाँ ही बनीं ।
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११ स्वतंत्र मूर्तियों में से दो-दो क्रमशः पार्श्वनाथ और आदिनाथ मंदिरों पर हैं । अन्य उदाहरण स्थानीय संग्रहालयों एवं अन्य जैन मंदिरों में हैं । सात उदाहरणों में अंबिका त्रिभंग में और अन्य में ललितमुद्रा में हैं । अंबिका की द्विभुजी मूर्ति पार्श्वनाथ मंदिर के दक्षिणी भित्ति पर है । इस मूर्ति में त्रिभंग में खड़ी अंबिका के दाहिने हाथ में आम्रलुंबि और बायें में बालक हैं । इस उदाहरण में सिंह वाहन की आकृति नहीं बनी है । अंबिका की चतुर्भुज मूर्तियों में नीचे के दो हाथों में आम्रलुंबि एवं बालक और ऊपरी हाथों में फल ( या पद्म में लिपटी पुस्तिका) प्रदर्शित हैं केवल मंदिर १३ की एक मूर्ति ही इसका अपवाद है जिसमें ऊर्ध्व करों में पद्म के स्थान पर अंकुश और पाश प्रदर्शित हैं । श्वेताम्बर परपंरा के ग्रंथों में अंबिका को चतुर्भुजा और दो हाथों में आम्रलुंबि एवं पुत्र तथा अन्य दो में पाश और अकुंश से युक्त निरूपित किया गया है ।' ११ वीं शती ई० की चार मूर्तियों में दक्षिण पार्श्व में दूसरा पुत्र भी निरूपित हुआ है। स्वतंत्र मूर्तियों में अंबिका के साथ दो पार्श्ववर्ती सेविकाओं की आकृतियाँ भी दिखाई गई हैं जिनके एक हाथ में चामर ( या पद्म ) है । परिकर में उपासकों, गन्धर्वों एवं मालाधरों का भी अंकन हुआ है । पुरातात्त्विक संग्रहालय, खजुराहो की एक मूर्ति (११वीं शती ई०, क्रमांक १६०८) में अंबिका के प्रतिमालक्षण के विकास की उस स्थिति को अभिव्यक्त किया गया है जहाँ अंबिका जिन के समान प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेती हैं । इस मूर्ति की पीठिका पर जिन मूर्तियों के सामान द्विभुज यक्ष-यक्ष की भी आकृतियाँ बनीं हैं। धन के थैले से युक्त यक्ष कुबेर हैं किन्तु यक्षी सामान्य लक्षणों वाली हैं जिसके हाथों में अभय मुद्रा एवं जलमात्र हैं । इस प्रकार स्पष्ट है कि सिंह वाहन, आम्र वृक्ष तथा करों में आम्रलुंबि एवं पुत्र के प्रदर्शन में खजुराहो के कलाकारों ने परपंरा के प्रति प्रतिबद्धता दिखलाई है । किन्तु यक्षी का चतुर्भुज स्वरूप और दो ऊर्ध्व करों में पद्म ( या पद्म में लिपटी पुस्तिका) और अंकुश एवं पाश का प्रदर्शन खजुराहो की अंबिका मूर्तियों की स्थानीय विशेषता है ।
१. निर्वाणकालिका १८.२२; शिष्टिशालाकापुरुषचरित्र ८.९.३८५-८६ । अम्बादेवी कनककान्तिरुचिः सिंहवाहना चतुर्भुजा । आलुंबिपाशयुक्तदक्षिण करद्वया पुत्रांकुशासक्तवामकरद्वया च ।।
प्रवचनसारोद्धार २२, पृ० ९४
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