Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो का जैन पुरातत्व कुछ स्वतंत्र मूर्तियां मिली हैं और जिन-संयुक्त मूर्तियों में भी यक्षी का स्वतंत्र स्वरूप प्रकट हुआ है। दिगम्बर परंपरा में सिद्धायिनी को सिंहवाहना, द्विभुजी तथा वरद-मुद्रा और पुस्तक धारण किये हुए निरूपित किया गया है ।दिगम्बर परंपरा में यक्षी के साथ पुस्तक और श्वेताम्बर परंपरा में पुस्तक और वीणा दोनों का प्रदर्शन, यक्षी के निरूपण में सरस्वती का प्रभाव दर्शाता है।
__ खजुराहो में महावीर की मूर्तियों में यक्षी के रूप में सिंह वाहन और करों में फल, चक्र, पद्म एवं शंख धारण करने वाली यक्षी निरूपित है, जो यक्षी के निरूपण में वैष्णवी का प्रभाव दिखलाती हैं । खजुराहो में सिद्धायिका की केवल एक स्वतंत्र मूर्ति है । यह मूर्ति मंदिर १० के उत्तरंग पर है । ११वीं शती ई० की इस मूर्ति में चतुर्भजा यक्षी ललितमुद्रा में आसीन है । यक्षी के समीप ही सिंह वाहन की आकृति बनी है । यक्षी के करों में वरदमुद्रा, खड्ग, खेटक एवं जलपात्र हैं । पूरी तरह समान लक्षणों वाली दूसरी मूर्ति देवगढ़ के मंदिर ५ के उत्तरंग पर देखी जा सकती है । यह मूर्ति दिगम्बर परंपरा से मेल नहीं खाती । संभवतः किसी स्थानीय परंपरा के आधार पर इसका निर्माण हुआ था । रे
१. सिद्धायिनी तथा देवी द्विभुजा कनकप्रभा । वरदा पुस्तकं धत्ते सुभद्रासनमाश्रिता ॥
___ प्रतिष्ठासारसंग्रह ५. ७३-७४ प्रतिमासारोबार ३. १७८ । २. तिवारी, एम० एन० पी०, एलिमेन्ट्स आफ जैन आइकनोग्राफी, पृ० ५८-६२ ।
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