Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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अन्य देव मूतियां सभी साकार हैं । पंच परमेष्ठियों के पूजन की परम्परा पर्याप्त प्राचीन रही है । अर्हतों या जिनों के अलावा आचार्य, उपाध्याय और साधु की भी स्वतन्त्र मूर्तियों के अनेक उदाहरण विमल वसही, लूणवसही, कुंभारिया, ओसियां, देवगढ़, ग्वालियर और खजुराहो जैसे स्थलों पर हैं । ये मूर्तियां अधिकांशतः १.वी से १२वी शती ई० के मध्य की हैं । जैन आचार्यों को सामान्यतः स्थापना के साथ उपदेश या व्याख्यान की मुद्रा में अकेले या दूसरे आचार्य के साथ शास्त्रार्थ करते हुए दिखाने की परम्परा रही है। मूर्तियों में एक हाथ व्याख्यान की मुद्रा में है और दूसरे में पुस्तक है। जैन साधुओं की आकृतियां मुखपट्टिका, ओघा तथा मयूरपिच्छिका से युक्त बनाई गई। जैन ग्रन्थों में साधुओं के साथ स्थापना, मुखपट्टिका, दण्ड, प्रोंचनक (मयूरपिच्छिका या रजोहरण), जपमालिका आदि के प्रदर्शन के उल्लेख हैं।'
__ खजुराहो की मूर्तियों में जैन आचार्यों एवं साधुओं दोनों का अंकन हुआ है। समकालीन जैन आचार्यों के नामों के अध्ययन की दृष्टि से खजुराहो के लेख विशेष महत्व के हैं। पार्श्वनाथ मंदिर के विक्रम संवत् १०११ ( ९५४ ई० ) के लेख में वासवचंद्र का नामोल्लेख है जो चन्देल शासक धंग के महाराजगुरू थे। इसके अतिरिक्त पार्श्वनाथ मंदिर के अन्य लेखों में आचार्य श्री देवचंद्र, श्री कुमुदचंद्र' तथा संवत् १२१५ ( ११५८ ई० ) के एक मूर्ति लेख ( मंदिर १३ ) में चारुकीर्ति मुनि और उनके शिष्य कुमार नन्दी के नामोल्लेख हैं। देवचन्द्र संभवतः वासवचन्द्र के शिष्य या प्रशिष्य थे। शांतिनाथ मंदिर की विशाल शांतिनाथ प्रतिमा ( १०२८ ई० ) के पीठिका लेख में आचार्य-पुत्र ठाकुर देवधर तथा उनके पुत्रों शिवचन्द्र एवं चन्द्रदेव के उल्लेख हैं। मंदिर ७ के प्रवेश-द्वार की बड़ेरी की सुपार्श्वनाथ मूर्ति के दोनों ओर कुल २६ आकृतियाँ बनी हैं। इनमें से १८ आकृतियां जैन साधुओं की हैं । मुण्डितमस्तक साधुओं के हाथों के बीच मयूरपिच्छिका प्रदर्शित है तथा उनके दोनों हाथ स्तुतिमुद्रा में हैं । इन आकृतियों के नीचे उनके नामों का उत्कीर्ण होना विशेष महत्त्वपूर्ण है । लेख यद्यपि काफी धूमिल है किन्तु फिर भी इसमें योगनन्दी, मेष ( या मेघसिंह ), अरचन्द्र, योगचंद्र, यक्षदेव, सरूपदेव एवं विशालकीर्ति के नाम स्पष्ट हैं ।
पार्श्वनाथ एवं घण्टई मंदिरों पर जैन आचार्यों एवं साधुओं की पर्याप्त मूर्तियां हैं। इनमें जैन साधुओं की अपेक्षाकृत अधिक मूर्तियाँ हैं। पार्श्वनाथ मंदिर के अर्धमण्डप एवं गर्भगृह के प्रवेशद्वारों पर मुण्डितमस्तक वाले निर्वस्त्र जैन साधुओं की कई स्थानक मूर्तियाँ हैं । अर्धमण्डप के उदाहरणों में इन जैन साधुओं को जिन मूर्ति की पूजा करते हुए दिखाया गया है । एक उदाहरण में दो जैन साधुओं को एक दूसरे के कंधे पर हाथ रखकर वार्तालाप की मुद्रा में तथा मयूरपीच्छिका के साथ आकारित किया गया है। पार्श्वनाथ मंदिर के पश्चिमी शिखर पर जैन आचार्य और ब्राह्मण साधु के बीच के शास्त्रार्थ को भी दिखाया गया है। १. शाह, यू० पी०, स्टडीज इन जैन आर्ट, पृ० ११३-१५. २. मंदिर ११ के एक स्तंभ-लेख में भी देवचन्द्र और कुमुदचन्द्र के नाम उत्कीर्ण हैं। ३. एपिमाफिया इण्डिका, खंड १, कलकत्ता, १८९२, पृ० १३५-३६, १५२-५३; जैन,
ज्योतिप्रसाद, प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलायें, दिल्ली, पृ० २२७ ।
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