Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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अन्य देव मूर्तियां
आठवीं शती ई० के बाद निरूपित हुआ, पर सरस्वती की मूर्तियाँ उसके पूर्व ही बनने लगी थीं। श्वेताम्बर और दिगम्बर स्थलों पर आठवीं से १२वीं शती ई० के मध्य सरस्वती की प्रभूत मूर्तियाँ बनीं। जैन शिल्पशास्त्रों में हंसवाहना सरस्वती को चतुर्भुजा और वरदमुद्रा ( या वीणा ), पद्म, पुस्तक और अक्षमाला के साथ निरूपित किया गया है।' दिगम्बर ग्रंथों ( प्रतिष्ठासारोद्धार ) में वाहन के रूप में हंस के स्थान पर मयूर का उल्लेख है । इस प्रकार जैन सरस्वती की लाक्षणिक विशेषतायें पूरी तरह ब्राह्मण सरस्वती से प्रभावित हैं। सरस्वती-मूर्तियों के प्रमुख उदाहण खजुराहो के अतिरिक्त देवगढ़, कुंभारिया, दिलवाड़ा जैसे स्थलों से ज्ञात हैं । जैन सरस्वती की उत्कृष्टतम कलात्मक मूर्तियां राजस्थान में पल्लू ग्राम ( बीकानेर ) से मिली हैं। वाहन के संदर्भ में सर्वदा परम्परा के प्रति प्रतिबद्धता नहीं दर्शायी गई है। कुंभारिया के नेमिनाथ मंदिर ( श्वेताम्बर ) की एक मूर्ति में वाहन मयूर है, जबकि खजुराहो की दिगम्बर परम्परा की मूर्तियों में वाहन के रूप में हंस का अंकन हुआ है। देवगढ़ की मूर्तियों में वाहन के रूप में हंस और मयूर दोनों का अंकन देखा जा सकता है। इन मूर्तियों में सरस्वती के करों में परम्परा के अनुरूप ही पुस्तक, पद्म, अक्षमाला और जलपात्र तथा कभी-कभी वीणा प्रदर्शित हैं।
___ खजुराहो में सरस्वती की कुल आठ मूर्तियाँ हैं जिनमें से पाँच पार्श्वनाथ मंदिर पर हैं। अन्य मूर्तियाँ मंदिर तथा स्वतन्त्र उत्तरंगों पर हैं ।" एक उदाहरण के अतिरिक्त यहाँ सरस्वती को सर्वदा चतुर्भुजा दिखाया गया है और उनके हाथों के आयुध भी लगभग समान हैं। ललितमुद्रा में विराजमान सरस्वती के करों में पुस्तक, वीणा और पद्म प्रदर्शित हैं। पार्श्वनाथ मंदिर के मंडप के दक्षिणी अधिष्ठान की रथिकामूर्ति में सरस्वती षड्भुजा हैं । षड्भुजा सरस्वती के ऊपर हाथों में क्रमशः पद्म और पुस्तक हैं, मध्य के दोनों हाथ वीणा वादन में रत हैं तथा नीचे के हाथों में वरदमुद्रा और जलपात्र प्रदर्शित हैं। सरस्वती के पाश्वर्यों में चामरधारी सेवकों, चरणों के समीप उपासकों तथा ऊपर की ओर लघु जिन आकृति १. तथा श्रुतदेवतां शुक्लवर्णां हंसवाहनां चतुर्भुजा वरदकमलान्वित-दक्षिणकरां पुस्तकाक्षमा
लान्वितवामकरां चेति । निर्वाणकलिका, श्रुतदेवता, पृ० ३७; आचारदिनकर, भाग २,
प्रतिष्ठाधिकार, पृ० १५८।। २. शाह, यू० पी०, "दि आइकनोग्राफी आव दि जैन गाडेस सरस्वती", जर्नल यूनिवसिटी ___ आव बाम्बे, खंड १० ( न्यू सिरीज ), भाग २, सितम्बर १९४१, पृ० २०५-०६ । ३. १२वीं शती ई० की इन मूर्तियों में त्रिभंग में खड़ी चतुर्भुजा सरस्वती हंसवाहना हैं
और उनके करों में वरदमुद्रा, नालयुक्त पद्म, पुस्तक और कमण्डलु हैं। द्रष्टव्य, शर्मा, बी० एन०, जैन प्रतिमायें, दिल्ली, १९७९, पृ० १५-१६ । ४. तीन उदाहरण गर्भगृह और पश्चिमी देवकुलिका के उत्तरंगों पर हैं तथा शेष दो उदाहरण
मंडप के उत्तरी और दक्षिणी अधिष्ठान पर हैं। ५. सरस्वती की एक छोटी आकृति पार्श्वनाथ मंदिर के मंडप की दक्षिणी भित्ति की लक्ष्मी
मूर्ति के परिकर में आकारित है।
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