Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
View full book text
________________
यक्ष-यक्षी मूर्तियाँ
पद्मावती यक्षी
पद्मावती पार्श्वनाथ की यक्षी हैं। अंबिका और चक्रेश्वरी के बाद खजुराहो में पद्मावती की सर्वाधिक मूर्तियाँ हैं। जिन-संयुक्त मूर्तियों के अतिरिक्त पद्मावती की तीन स्वतंत्र मूर्तियाँ भी हैं । दिगम्बर परंपरा के ग्रंथों में कुक्कुट-सर्प (या पद्म)-वाहना पद्मावती का चतुर्भुज, षड्भुज एवं चतुर्विंशतिभुज रूपों में ध्यान किया गया है। चतुर्भुजा पद्मावती के तीन हाथों में अंकुश, अक्षसूत्र एवं पद्म; तथा षड्भुजा यक्षी के करों में पाश, खड्ग, शूल, बालेन्दु, गदा एवं मूसल के उल्लेख हैं।' इस प्रकार पद्मावती के हाथों में मुख्यतः पद्म, पाश, अंकुश तथा वाहन के रूप में कुक्कुट या कुक्कुटसर्प और शीर्ष भाग में तीन, पाँच, या सात सर्पफणों के छत्र के प्रदर्शन की परंपरा थी। सर्प से सम्बद्ध होने के कारण ही मूर्त उदाहरणों में यक्षी के करों में सामान्यतः सर्प भी दिखाया गया है ।
___ खजुराहो की पार्श्वनाथ की मूर्तियों में यक्षी अधिकांशतः सर्पफणों के छत्र से युक्त सामान्य लक्षणों वाली हैं । ११वीं शती ई० की सा० शां० जै० क० संग्रहालय की दो मूर्तियों ( के० १००, के० ६८ ) में यक्षी चतुर्भुजा और पाँच सर्पफणों के छत्र से शोभित हैं। यक्षी के करों में अभयमुद्रा, सर्प, पद्म और जलपात्र प्रदर्शित हैं ।
___ खजुराहो में पद्मावती की तीन स्वतंत्र मूर्तियाँ हैं । ११वीं शती ई० की ये मूर्तियाँ विभिन्न उत्तरंगों पर हैं। आदिनाथ मंदिर एवं मन्दिर-८ के उदाहरणों में यही का वाहन कुक्कुट है और उसके सिर पाँच सर्पफणों का छत्र प्रदर्शित है। आदिनाथ मंदिर की मुत में ललितासीन पद्मावती के करों में अभयमुद्रा, पाश, पद्म-कलिका एवं जलपात्र हैं। मंदिर-८ की मूर्ति में देवी खड़ी हैं और उनके दो अवशिष्ट करों में वरदमुद्रा और पद्म हैं। जाडिन संग्रहालय, खजुराहो की तीसरी मूर्ति (क्रमांक १४६७) में यक्षी ललित-मुद्रा में विराजमान है और उसका वाहन कुक्कुट है तथा उसके सिर पर सात सर्पफणों का छत्र है। यक्षी के तीन अवशिष्ट करों में वरदमुद्रा, पाश और अंकुश प्रदर्शित हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि खजुराहो में पद्मावती के निरूपण में कुक्कुट वाहन तथा करों में पद्म, पाश और अंकुश के संदर्भ में दिगम्बर परंपरा का पालन किया गया है । अंतिम मूर्ति पूरी तरह से अपराजितपृच्छा के विवरणों के अनुरूप है। सिद्धायिका यक्षी
सिद्धायिका या सिद्धायिनी महावीर की यक्षी है। महावीर की यक्षी होने के बाद भी सिद्धायिका की स्वतंत्र मूर्तियाँ नहीं बनी और महावीर की मूर्तियों में भी यक्षी का पारंपरिक स्वरूप नहीं अभिव्यक्त हुआ। केवल देवगढ़ एवं खजुराहो में ही सिद्धायिका की
१. प्रतिष्ठासारसंग्रह ५. ६७-७८; प्रतिष्ठासारोद्धार ३. १७४ । २. पाशांकुशौ पद्मवरे रक्तवर्णा चतुर्भुजा । पद्मासना कुक्कुटस्था ख्याता पद्मावतीति च ॥
अपराजितपृच्छा २२१. ३७ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org