Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो का जन पुरातत्त्व लिपट गयीं तथा उनके शरीर पर सर्प, वृश्चिक और छिपकली जैसे जन्तु निश्चिन्त भाव से विचरण करने लगे थे । किन्तु बाहुबली इन सबसे विचलित हुए बिना कठिन तपस्या में रत रहे । बाहुबली की कायोत्सर्ग-मुद्रा उनके आत्मनियंत्रण तथा नग्नता पूर्ण विरक्ति और मनोमावों पर उनके पूर्ण नियंत्रण का भाव व्यक्त करती हैं । दिगम्बर परम्परा में बाहुबली के दोनों पाश्वों में दो विद्याधरियों की उपस्थिति के सन्दर्भ हैं। दिगम्बर पुराणों के अनुसार इन विद्याधरियों ने बाहुबली के शरीर से लिपटी हुई लता-वल्लरियों को हटाया था।'
__ मूर्तियों में बाहुबली को कायोत्सर्ग में निर्वस्त्र तथा लता-वल्लरियों एवं शरीर पर सर्प, वृश्चिक्, छिपकलियों आदि से सुशोभित दर्शाया गया है। उत्तर भारत की बाहुबली की मूर्तियों में प्रतिमालक्षण की दृष्टि से दक्षिण भारत की अपेक्षा अधिक विकास दृष्टिगत होता है । खजुराहो, बिल्हरी और देवगढ़ की मूर्तियों में बाहुबली को श्रीवत्स से युक्त तथा सिंहासन, धर्मचक्र, चामरधारी सेवकों एवं उड्डीयमान मालाधरों तथा कभी-कभी एक और कभी तीन छत्रों से युक्त दिखाया गया है। ये सभी विशेषतायें जिन मूर्तियों से संबद्ध रही हैं । इस प्रकार उत्तर भारत में बाहुबली को जिनों के समकक्ष प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न किया गया। देवगढ़ के मंदिर ११ तथा खजुराहो की दो मूर्तियों में (१२वीं शती ई०) जिन मूर्तियों के समान बाहुबली के साथ द्विभुज यक्ष और यक्षी भी आकारित हैं।
खजुराहो में बाहुबली की कुल पाँच मूर्तियाँ हैं । एक उदाहरण पार्श्वनाथ मंदिर के गर्भगृह की दक्षिणी भित्ति पर है । यह मूर्ति संभवत: उत्तर भारत में बाहुबली की प्राचीनतम मूर्तियों में दूसरी है । खजुराहो की अन्य तीन मूर्तियां (११वीं शती ई०) बाहुबली की लघु मूर्तियाँ हैं, जो क्रमशः मंदिर संख्या १७ की आदिनाथ एवं मंदिर संख्या १/१ की पार्श्वनाथ मूर्तियों के परिकर तथा पुरातत्त्व संग्रहालय, खजुराहो के उत्तरंग (क्रमांक १७२४) पर हैं। इन उदाहरणों में बाहुबली को निर्वस्त्र और कायोत्सर्ग-मुद्रा में लता-वल्लरियों से सुशोभित दर्शाया गया है । चौथी मूर्ति स्थानीय सा० शां० जै० क० संग्रहालय में है।
पार्श्वनाथ मंदिर की मूर्ति ( ७४४६१ से० मी० ) प्रतिमालक्षण की दृष्टि से विकसित कोटि की है । मूर्ति पर संभवतः 'गोमट' भी उत्कीर्ण है। बाहुबली निर्वस्त्र और कायोत्सर्ग-मुद्रा में सामान्य पीठिका पर निरूपित हैं। पीठिका के मध्य में धर्मचक्र एवं छोरों पर सिंहासन के सूचक दो सिंहों की आकृतियाँ बनी हैं। बाहुबली के हाथों और पैरों से लता-वल्लरियाँ लिपटी हुई हैं और वक्षस्थल पर वृश्चिक् तथा छिपकली की आकृतियों बनी हैं । तपस्यारत बाहुबली के केश गुच्छकों के रूप से प्रदर्शित हैं। उनके पाश्वों में दो विद्याधरियों को लता-वल्लरियों को शरीर से हटाते हुए दर्शाया गया है। विद्याधरियों के समीप ही चामरधारी सेवकों की भी दो आकृतियाँ उकेरी हैं। सिर के ऊपर विछत्र के स्थान पर केवल एक ही छत्र है जो इस बात का संकेत है कि बाहुबली तीर्थकर न होकर केवली मात्र हैं। परिकर के ऊपरी भाग में दो उड्डीयमान मालाधरों और गजों की आकृतियाँ बनी हैं। इस प्रकार यह मूर्ति एक ओर तीर्थकर मूर्तियों ( श्रीवत्स, सिंहासन, १. हरिवंशपुराण ११. १०१; आदिपुराण, खण्ड-२, ३६. १८३ ।
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