Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
View full book text
________________
५८
खजुराहो का जैन पुरातत्त्व
खजुराहो में सर्वानुभूति की कुल चार स्वतन्त्र मूर्तियाँ ( १०वीं-११वीं शती ई०) हैं । इनमें चतुर्भुज सर्वानुभूति ललितमुद्रा में विराजमान हैं। शांतिनाथ मंदिर एवं मन्दिर ४ की दो मूर्तियों में सर्वानुभूति के ऊपरी करों में पद्म और निचले में फल और निधिथैला हैं। अन्य दो मूर्तियाँ शांतिनाथ मंदिर के समीप के स्तंभों पर उत्कीर्ण हैं । एक उदाहरण में तीन सुरक्षित हाथों में अभयमुद्रा, पद्म एवं निधि-थैला प्रदर्शित है। चरणों के समीप दो घट भी उत्कीर्ण हैं जो संभवतः निधि-पात्र हैं। नेमिनाथ की जिन-संयुक्त मूर्तियों में द्विभुज यक्ष के दाहिने हाथ से या तो अभयमुद्रा व्यक्त है या फिर फल प्रदर्शित है और बायें हाथ में निधि-थैला दिखाया गया है। खजुराहो की मूर्तियाँ मूर्तिलक्षण की दृष्टि से अन्य दिगम्बर स्थलों की मूर्तियों के समान हैं । चक्रेश्वरी यक्षी
चक्रेश्वरी ऋषभनाथ की यक्षी है। दिगम्बर ग्रन्थों में उसके केवल चतुर्भुज और द्वादशभुज स्वरूपों का ध्यान किया गया है। चतुर्भुज स्वरूप में यक्षी के दो हाथों में चक्र और शेष में मातुलिंग और वरद-मुद्रा के उल्लेख हैं । द्वादशभुजी यक्षी के आठ हाथों में चक्र, दो में वज्र और अन्य दो में मातुलिंग और वरदमुद्रा के प्रदर्शन का विधान है।'
खजुराहो में अंबिका के बाद चक्रेश्वरी की ही सर्वाधिक स्वतन्त्र मूर्तियां हैं । गरुडवाहना ( मानव रूप में ) चक्रेश्वरी सामान्यतः किरीटमुकुट से सज्जित हैं । खजुराहो में चक्र श्वरी की द्विभुज, चतुर्भुज, षड्भुज, अष्टभुज और दशभुज मूर्तियाँ हैं । इस प्रकार चक्रेश्वरी के निरूपण में स्वरूपगत विविधता स्पष्ट है। साथ ही यह भी स्पष्ट है कि किसी स्थानीय परंपरा के अन्तर्गत विभिन्न रूपों में यक्षी का अंकन हुआ । मूर्तियों में गरुडवाहन तथा चक्र का प्रदर्शन परंपरासम्मत है, किन्तु करों में शंख और गदा का प्रदर्शन वैष्णवी का प्रभाव है ।
__ खजुराहो में चक्र श्वरी की १०वीं से १२वीं शती ई० की ३२ जिनसंयुक्त मूर्तियाँ हैं । ऋषभनाथ के साथ यद्यपि कभी-कभी यक्ष वृषानन नहीं भी है, किन्तु यक्षी सदा चक्रेश्वरी ही है। केवल दो उदाहरणों में यक्षी द्विभुजा हैं और उसके हाथों में अभयमुद्रा और चक्र हैं। अन्य सभी उदाहरणों में यक्षी चतुर्भुजा है और उसके हाथों में सामान्यतः अभयमुद्रा, गदा ( या पद्म ), चक्र एवं शंख हैं। खजुराहो में चक श्वरी की १३ स्वतन्त्र मूर्तियाँ भी हैं जिनमें से नौ उत्तरंगों पर हैं। इनमें चक्रेश्वरी चार से १० हाथों वाली हैं । पार्श्वनाथ, घण्टई एवं आदिनाथ मंदिरों के ललाटबिम्ब में चक्रेश्वरी की आकृति बनी है । खजुराहो में १०वीं शती ई० में ही चक्रेश्वरी की आठ और १० हाथों वाली मूर्तियाँ बनी जो प्रतिमालक्षण की दृष्टि से चक्रेश्वरी मूर्तियों के तीन विकास को स्पष्ट करती १. वामे चक्रेश्वरीदेवी स्थाप्यद्वादशसद्भुजा ।
धत्ते हस्तद्वयेवजे चक्राणि च तथाष्टसु ।। एकेन बीजपूरं तु वरदा कमलासना । चतुर्भुजाथवा चक्र द्वयोर्गरुडवाहनम् ।।
प्रतिष्ठासारसंग्रह ५. १५-१६; प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१५६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org