Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
View full book text
________________
तीर्थंकर या जिन मूर्तियाँ
त्रितीर्थी जिन मूर्ति
खजुराहो में केवल एक ही त्रितीर्थी जिन मूर्ति है । लगभग ११वीं शती ई० की यह मूर्ति मंदिर १५ में है । इस मूर्ति में नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर की कायोत्सर्ग मूर्तियां बनी हैं । नेमिनाथ और महावीर को सिंहासन के स्थान पर सामान्य पीठिका पर क्रमशः शंख और सिंह लांछन के साथ उत्कीर्ण किया गया है। पार्श्वनाथ के सिर पर सात सर्पफणों का छत्र है । सिंहासन के अतिरिक्त अन्य सभी प्रातिहार्य तीनों ही जिनों के साथ उत्कीर्ण हैं | जिन चौमुखी या प्रतिमा सर्वतोभद्रका
प्रतिमा सर्वतोभद्रिका या सर्वतोभद्र प्रतिमा का अर्थ ऐसी प्रतिमा है जो सभी ओर से शुभ या मंगलकारी है । ऐसी मूर्तियों को जिन चौमुखी या चतुर्मुख भी कहा गया है ।" जिन चौमुखी मूर्तियों में एक ही शिलाखंड में चारों ओर चार जिन मूर्तियाँ बनी होती हैं । पहली शती ई० में मथुरा में इनका निर्माण प्रारम्भ हुआ । कुषाण कालीन चौमुखी मूर्तियों में चारों दिशाओं में चार अलग-अलग जिनों की कायोत्सर्ग मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । ल० ७ वीं ८ वीं शती ई० में ऐसी चौमुखी मूर्तियों का अंकन भी प्रारम्भ हुआ जिनमें चारों ओर एक ही जिन की चार आकृतियां बनी हैं। ऐसी मूर्तियों में सामान्यतः जिनों के लांछन नहीं उत्कीर्ण हैं । इस वर्ग की १०२३ ई० की एक मूर्ति राज्य संग्रहालय, लखनऊ में है । पीठिका लेख में इस मूर्तिको वर्धमान ( महावीर ) का चतुबिम्ब कहा गया है। जिन चौमुखी मूर्तियों में अधिकांशतः कुषाण कालीन मूर्तियों की विशेषताओं को ही प्रदर्शित किया गया है । २४ जिनों के लांछनों के निर्धारण के बाद भी चार में से केवल दो ही जिनों के साथ क्रमशः जटाओं (ऋषभनाथ) और सिर पर सात सर्पफणों के छत्र ( पार्श्वनाथ) के प्रदर्शन की कुषाण कालीन परम्परा प्रचलित रही । ल० आठवीं-नवीं शती ई० में चौमुखी मूर्तियों में परिकर में लघु जिन आकृतियों, प्रातिहार्यो और कभी-कभी यक्ष-यक्षी युगलों और नवग्रहों को भी दिखाया जाने लगा । साथ ही चौमुखी मूर्तियों का शीर्षभाग छोटे जिनालयों के रूप में भी बनने लगा जिनमें ऊपर की ओर आमलक और कलश भी उत्कीर्ण हुए। चतुर्मुख जिनालय के प्रमुख उदाहरण पहाड़पुर (बंगाल, ल० ९ वीं शती ई० ) और गुना (मध्य प्रदेश, ११ वीं शती ई० ) में हैं |
५३
खजुराहो में चौमुखी मूर्ति का केवल एक ही उदाहरण है जो स्थानीय पुरातात्त्विक संग्रहालय (क्रमांक १५८८) में है । इस चौमुखी मूर्ति में चारों ओर जिनों की चार ध्यानस्थ मूर्तियाँ बनीं हैं | अष्टप्रातिहार्यों से युक्त चार जिनों में से केवल दो की पहचान जटाओं और सात सर्पकणों के छत्र के आधार पर क्रमशः ऋषभनाथ और पार्श्वनाथ से सम्भव है । इस प्रकार यह चौमुखी स्पष्टतः मथुरा की कुषाण कालीन चौमुखी मूर्तियों के अनुकरण पर बनी है । प्रत्येक जिन के साथ परिकर में १२ लघु जिन आकृतियाँ बनी हैं । इस प्रकार चार
१. एपिग्राफिया इण्डिका, खं० २, पृ० २०२-०३, २१०, भट्टाचार्य, बी० सी०, पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ४८; अग्रवाल, बी० एस० पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० २७, दे, सुधीन, "चौमुख ए सिम्बालिक जैन आर्ट", जैन जर्नल, खं० ६, अं० १, पृ० २७ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org