Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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तीर्थकर या जिन मूर्तियां खजुराहो में पाश्वनाथ के यक्ष-यक्षी का स्वरूप पूरी तरह उपलब्ध परम्परा से मेल नहीं खाता । साथ ही उनके मूर्ति लक्षणों में एकरूपता भी नहीं दृष्टिगत होती। महावीर
महावीर या वर्धमान इस अवसर्पिणी के अन्तिम जिन हैं । सिद्धार्थ उनके पिता और त्रिशला उनकी माता थीं । महावीर बुद्ध के समकालीन और एक ऐतिहासिक पुरुष थे । महावीर का जन्म ५९९ ई० पू० और निर्वाण ल० ५२७ ई० पू० में हुआ । पार्श्वनाथ द्वारा स्थापित जैन धर्म को महावीर ने और आगे बढ़ाया। महावीर का लांछन सिंह और यक्ष-यक्षी मातंग एवं सिद्धायिका हैं । यह आश्चर्य की बात है कि वर्तमान अवसपिणी का अन्तिम जिन होने के बाद भी महावीर की मूर्तियाँ ऋषभनाथ और पार्श्वनाथ की तुलना में कम हैं । खजुराहो में भी ऋषभनाथ और पार्श्वनाथ की अपेक्षा महावीर की कम मूर्तियाँ हैं। दिगम्बर ग्रन्थों में मस्तक पर धर्मचक्र से चिह्नित द्विभुज मातंग को गजारूढ़ बताया गया है । मातंग का दाहिना हाथ वरदमुद्रा में होगा जबकि बायें में मातुलिंग होगा।' द्विभुजा सिद्धायिका सिंहवाहना है और उसके हाथों में वरदमुद्रा और पुस्तक प्रदर्शित हैं ।
खजुराहो में महावीर की नौ मूर्तियाँ हैं। ये मूर्तियाँ १०वीं से १२वीं शती ई० के मध्य की हैं । सबसे प्राचीन मूर्ति पाश्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह की दक्षिणी भित्ति पर है । आठ उदाहरणों में महावीर ध्यानमुद्रा में आसीन हैं । कायोत्सर्ग मूर्ति मन्दिर-१६ में है । यक्षयक्षी युगलों का अंकन केवल ६ मूर्तियों में हुआ किन्तु सिंह लांछन सभी उदाहरणों में बना है। खजुराहो की महावीर मूर्तियों की एक विशेषता यह है कि इनमें अधिकांश उदाहरणों में सिंह लांछन को सिंहासन के मध्य से बाहर की ओर झाँकते हुए दिखलाया गया है। इन मूर्तियों में सिंह की पूरी आकृति के स्थान पर केवल समक्ष भाग ही दिखलाया गया है । यद्यपि महावीर के साथ यक्ष-यक्षी का निरूपण १०वीं शती ई० में प्रारम्भ हो गया, किन्तु स्वतन्त्र लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी ११वीं शती ई० में ही निरूपित हुए । पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह की मूर्ति में द्विभुज यक्ष-यक्षी सामान्य लक्षणों वाले हैं । इनके हाथों में अभयमुद्रा और फल प्रदर्शित है । मन्दिर-७ (१०९१ ई०) की मूर्ति में महावीर के यक्ष-यक्षी चतुर्भुज है। यक्ष का वाहन सिंह है और उसके हाथों में धन का थैला, शूल, पद्म और दण्ड प्रदर्शित हैं । सिंहवाहना यक्षी के हाथों में फल, चक्र, पद्म और शंख हैं। अन्य उदाहरणों में भी यक्ष और यक्षी दोनों के साथ सिंह वाहन की आकृति उत्कीर्ण है । यद्यपि यक्ष के हाथों में आयुध परिवर्तित होते रहे है, किन्तु यक्षी के हाथों में अधिकांश उदाहरणों में चक्र और शंख प्रदर्शित हैं। एक उदाहरण में (सा० शां० ज० क० संग्रहालय; के १३) चतुर्भुज यक्ष का वाहन कूर्म है और उसके हाथों में अभयमुद्रा, परशु, पुस्तक और फल हैं । एक अन्य मूर्ति में सिंह पर आरूढ़ चतुर्भुज यक्ष के तीन हाथों में गदा, पद्म और धन का थैला स्पष्ट हैं । एक दूसरी मूर्ति (सा० शां० जै० क० संग्रहालय,
२३१) में मातंग द्विभुज तथा मेष वाहन वाले है । उनके एक हाथ में शक्ति है, जबकि दूसरा १. प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.७२-७३; प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१५२; प्रतिष्ठातिलकम् ७.२४ । २. प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.७३-७४; प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१७८; प्रतिष्ठातिलकम् ७.२४ ।
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