Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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अध्याय-३
जैन देवकुल
प्राचीन भारतीय कला तत्त्वतः धार्मिक रही है । फलतः धर्म या सम्प्रदाय विशेष में होने वाले परिवर्तनों ने शिल्प की विषयवस्तु को भी प्रभावित किया । इसी दृष्टि से खजुराहो की जैन मूर्तियों के अध्ययन के पूर्व जैन देवकुल के स्वरूप की जानकारी भी आवश्यक है । प्रस्तुत अध्ययन के आधार पर ही इस बात का आकलन किया जा सकेगा कि खजुराहो की जैन मूर्तियों के निरूपण में किस सीमा तक पारम्परिक और शास्त्रीय निर्देशों का पालन हुआ है ।
२४ तीर्थंकरों या जिनों की धारणा जैन धर्म की धुरी रही है । जैन देवकुल के अन्य सभी देवता किसी न किसी रूप में तीर्थंकरों से उनके सहायक देवों के रूप में सम्बद्ध रहे हैं । तीर्थंकरों को देवाधिदेव भी कहा गया है । कर्म तथा वासना पर विजय प्राप्ति के कारण इन्हें जिन (विजेता) और कैवल्य प्राप्ति के बाद साधु-साध्वियों एवं श्रावक-श्राविकाओं के सम्मिलित तीर्थ की स्थापना के कारण तीर्थंकर कहा गया । प्रत्येक अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी युगों में क्रमशः २४ तीर्थंकरों की कल्पना की गयी । वर्तमान अवसर्पिणी युग के २४ तीर्थंकरों में केवल अन्तिम दो — पार्श्वनाथ एवं महावीर ( या वर्धमान ) ही ऐतिहासिक व्यक्ति माने गये हैं ।
२४ तीर्थंकरों की प्रारम्भिक सूची समवायांग सूत्र', भगवती सूत्र, कल्पसूत्र े, चतुविशति - स्तव एवं पउमचरिय में है । २४ तीर्थंकरों की सूची ईसवी सन् के प्रारम्भ के पूर्व ही नियत हो गयी थी । इस सूची में ऋषभनाथ, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्द, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, सुविधिनाथ ( पुष्पदन्त ), शीतलनाथ, श्रेयांशनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, अरनाथ, कुंथुनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रत, नमिनाथ, नेमिनाथ (अरिष्टनेमि ), पार्श्वनाथ एवं महावीर (वर्धमान ) के नाम मिलते हैं । कुषाण काल में मथुरा में ऋषभनाथ, सम्भवनाथ, मुनिसुव्रत, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर की मूर्तियाँ भी बनने लगी थीं ।
जैन देवकुल में ६३ शलाका या उत्तम पुरुषों की कल्पना भी गयी है । इनमें २४ तीर्थंकरों के अतिरिक्त १२ चक्रवर्ती ( भरत, सागर, मघवा, सनत्कुमार, शान्ति, कुंथु, अर, सुसूम, पद्म, हरिषेण, जयसेन, ब्रह्मदत्त), ९ बलदेव (अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनन्द, नन्दन, पद्म या राम, बलराम ), ९ वासुदेव ( त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयम्भू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषपुण्डरीक, दत्त, नारायण या लक्ष्मण, कृष्ण) और ९ प्रतिवासुदेव ( अश्वग्रीव, तारक, मेरक,
१. समवायांग सूत्र १५७ ॥
२. कल्पसूत्र २, १८४–२०३ ।
३. पउमचरिय ( विमलसूरि कृत - ४ १३ ई०), १.१ - ७, ५.१४५ -४८ ।
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