Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो का जैन पुरातत्व
अधिकांश उदाहरणों में ऋषभनाथ ध्यान-मुद्रा में विराजमान हैं। मूलनायक को सामान्यतः पद्म पर और कभी-कभी सीधे सिंहासन पर दिखाया गया है। लगभग दस उदाहरणों में ऋषभनाथ की केश-रचना जटा के रूप में पोछे की ओर सँवारी गई है। अन्य उदाहरणों में केश छोटे-छोटे गुच्छकों के रूप में बने हैं । कन्धों पर लटें सभी मूर्तियों में दिखाई गई हैं। पाश्ववर्ती चामरधर सेवकों के हाथ कभी-कभी कट्यवलम्बित मुद्रा के स्थान पर फल (या सनाल पद्म) से युक्त है ।
खजुराहो की ऋषभनाथ की मूर्तियों को यक्ष-यक्षियों के आधार पर तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है। पहले वर्ग में यक्ष-यक्षी से रहित मूर्तियाँ हैं जिनके कुल चार उदाहरण हैं । दूसरे वर्ग में ऐसी मूर्तियाँ (दो उदाहरण) हैं जिनमें गोमुख ओर चक्रेश्वरी के स्थान पर सामान्य लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी आकारित हैं। तीसरे वर्ग में पारम्परिक यक्ष-यक्षो, गोमुखचक्रेश्वरी की मूर्तियाँ बनी हैं । खजुराहो में गोमुख और चक्रेश्वरी का अंकन १०वीं शती ई० के मध्य से ही प्रारम्भ हो गया था जिसका एक उदाहरण पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह की मूर्ति है । गरुडवाहना (मानव) चक्रेश्वरी अधिकांशतः चतुर्भुज हैं जबकि गोमुख यक्ष का द्विभुज और चतुर्भुज दोनों ही रूपों में निरूपण हुआ है। कुछ उदाहरणों में मूलनायक के चारों ओर २३, २४, ३३ और ५२ जिन मूर्तियाँ भी बनी हैं । चार उदाहरणों में नवग्रहों का भी अंकन हुआ है।
गोमुख और चक्रेश्वरी के निरूपण में मुख्य लक्षणों के सन्दर्भ में दिगम्बर ग्रन्थों के निदशों का पालन किया गया है। कुछ उदाहरणों में यक्ष के रूप में धन का थैला धारण करने वाले कुबेर की भी आकृति बनी है। गोमुख यक्ष के साथ कभी-कभी वृषभ वाहन (पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह की मूर्ति) भी प्रदर्शित है। गोमुख यक्ष के करों में सामान्यतः अभय (या वरद) मुद्रा, गदा (या परशु), पुस्तक (या पद्म) एवं कलश (या फल) प्रदर्शित हैं। उल्लेखनीय है कि गोमुख के हाथों में पुस्तक और पद्म का प्रदर्शन स्थानीय परम्परा की देन है। गरुडवाहना चक्रेश्वरी के हाथों में सामान्यतः वरद (या अभय)-मुद्रा, गदा (या चक्र), चक्र एवं शंख हैं । चक्रेश्वरी का निरूपण स्पष्टतः वैष्णवी से प्रभावित हैं।
पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह की मूर्ति में दोनों पाश्वों में सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग आकृतियों के अतिरिक्त परिकर में ४१ अन्य लघु जिन मूर्तियाँ भी बनी है । गोमुख यक्ष वृषभारूढ़ और चतुर्भुज है और उसके दो अवशिष्ट करों में गदा और फल हैं । गरुड-वाहना चक्रेश्वरी के तीन सुरक्षित करों में वरद, गदा और शंख है। इस उदाहरण में सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ के साथ भी चतुर्भुज यक्ष-यक्षी की आकृतियाँ उकेरी हैं। पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह के प्रदक्षिणापथ की पश्चिमी भित्ति को मूर्ति में परिकर में २३ अन्य जिन आकृतियाँ भी हैं जो इस मूर्ति को जिन चौबीसी मूर्ति बना देती हैं। ६ उदाहरणों में द्विभुज यक्ष के हाथों में धन का थैला और फल प्रदर्शित हैं, जो स्पष्टतः कुबेर के लक्षण हैं। तीन उदाहरणों में यद्यपि यक्ष गोमुख नहीं हैं किन्तु हाथों की सामग्री गोमुख यक्ष के ही समान है। साहू शांतिप्रसाद जैन कला संग्रहालय, खजुराहो (के० ७) की मूर्ति (४' ८" x २' २') में तीन
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