Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो का जैन पुरातत्त्व उसकी तोरण सज्जा में अलंकरण और मूर्तियों का सुन्दर संयोजन देखा जा सकता है । अर्धमण्डप की भीतरी छत खजुराहो के अन्य मंदिरों की तुलना में अधिक अलंकृत है । अधमण्डप का प्रवेश-द्वार विभिन्न देव आकृतियों तथा अलंकरणों से सज्जित है। आयताकार मण्डप की भीतर की ठोस दीवारें १६ अर्धस्तम्भों पर स्थित हैं जिनमें बीच-बीच में पीठिकाओं पर तीर्थंकरों को मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। गर्भगृह का प्रवेश-द्वार विभिन्न अलंकरणों तथा गंगा-यमुना, मिथुन, नत्रग्रहों एवं तीर्थंकरों की आकृतियों से सज्जित है।
मन्दिर के पश्चिमी भाग के देवालय में केवल गर्भगृह ही शेष है, जिसके प्रवेश-द्वार पर लता-वल्लरियों के अलंकरणों के साथ ही गंगा-यमुना, गणों, मिथुनों, नवग्रहों, सरस्वती तथा चतुर्भुज जैन प्रतिहारों की आकृतियाँ भी बनी है ।
पाश्वनाथ मन्दिर की भित्ति एवं अन्य भागों की स्वतन्त्र एवं देव-युगल मूर्तियों में पद्म के विविध रूपों तथा सर्प और बीजपूरक का सामान्य रूप से प्रदर्शन हुआ है । गर्भगृह की भित्ति के आठ कोणों की दिक्पाल मूर्तियों के ऊपर शिव की आठ मूर्तियाँ बनी हैं। इनमें जटामुकुट, वनमाला और उपवीत से सुशोभित चतुर्भुज शिव त्रिभंग में हैं और उनके हाथों में वरदाक्ष, त्रिशूल, सर्प और कमण्डलु है । समीप ही नन्दी वाहन भी उत्कीर्ण है। मण्डप की भित्ति पर भी शिव की इन्हीं विशेषताओं वाली चतुर्भुज मूर्तियाँ हैं । पूर्वी भित्ति की एक मूर्ति में शिव अपस्मारपुरुष पर खड़े हैं और उनके करों में अभयमुद्रा, त्रिशूल, चक्राकार पद्म तथा कमण्डलु हैं। मण्डप की अन्य मूर्तियों में नन्दी वाहन वाले शिव जटामुकुट से सुशोभित है और उनके दो करों में पद्म
और शेष दो में त्रिशूल, सर्प, कमण्डलु या बीजपूरक में से कोई दो प्रदर्शित हैं । एक उदाहरण में शिव के हाथों में अभयमुद्रा, गदा, सर्प और कमण्डलु भी प्रदर्शित हैं । ये मूर्तियाँ ऋषभनाथ और शिव के पारस्परिक सम्बन्ध को प्रकट करती हैं।
विष्णु की स्वतन्त्र मूर्तियाँ केवल मण्डप की भित्ति पर ही हैं। इनमें चतुर्भुज विष्णु के साथ वाहन नहीं दिखाया गया है। उनके हाथों में गदा, शंख, चक्र, धनुष, पद्म आदि प्रदर्शित है । अधिकांशतः विष्णु को एक हाथ गदा पर टेककर आराम करने की मुद्रा में दिखाया गया है। कुछ उदाहरणों में परशु, बीजपूरक तथा अभयमुद्रा भी दिखायी गयी है।
मण्डप की भित्ति, शिखर एवं अन्य भागों पर विष्णु-लक्ष्मी तथा शिव-पार्वती ( २५ से अधिक ) की सर्वाधिक मूर्तियाँ हैं। इनमें शिव-पार्वती या तो त्रिभंग में हैं या फिर ललितमुद्रा में । शिव-पार्वती की मूर्तियों में शिव का एक हाथ कटि पर है और दा में पद्म और सर्प है; एक हाथ आलिंगनमुद्रा में है । वाम पार्श्व की देवी का दाहिना हाथ आलिंगनमुद्रा में है तथा बायें में बीजपूरक ( या दर्पण ) है । कभी-कभी शिव के दो हाथों में से एक में फल और दूसरे में पद्म भी प्रदर्शित है । लक्ष्मी-नारायण मूर्तियों में, जिसका एक मनोज्ञ उदाहरण दक्षिणी भित्ति पर है, विष्णु किरीटमुकुट से शोभित हैं और उनके तीन हाथों में पद्म, शंख और चक्र प्रदर्शित है; एक हाथ आलिंगनमुद्रा में है। कभी-कभी विष्णु को गदा पर एक हाथ टेककर आराम करते हुए भी दिखाया गया है । ऐसी मूर्तियों में अन्य हाथों में शंख और सर्प (या फल या पद्म) हैं। वाम पार्श्व की लक्ष्मी आकृति का दाहिना हाथ सदा आलिंगनमुद्रा में है और बायें में पद्म है।
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