Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो की जैन कला
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सूचक है | पर दक्षिणी भित्ति की मूर्ति में अप्सरा को महावर रचाते हुए दिखाया गया है और उसके दक्षिण पार्श्व में एक पुरुष आकृति इस भाव के साथ दर्पण लिये खड़ी है मानो वह अप्सरा को दर्पण में अपना सौन्दर्य निहारने का निमंत्रण दे रही है । मण्डप के दक्षिणी भित्ति की प्रेमी को पत्र लिखती हुयी अप्सरा मूर्ति के बायें हाथ में एक पत्र है जबकि दाहिने हाथ की दो उँगलियाँ खुली और नीचे की ओर संकेत करती हुयी हैं । समीप ही एक पुरुष आकृति मसिपात्र के साथ प्रदर्शित है । मसिपात्र में ही लेखनी डूबी हुयी है । लेखन को उद्यत अप्सरा द्वारा पुरुष से लेखनी माँगने और पुरुष द्वारा लेखनी को मसिपात्र से निकालने के भाव की दृष्टि से यह अत्यन्त असाधारण मूर्ति है । उल्लेखनीय है कि अप्सरा मूर्तियों के साथ की पुरुष आकृतियाँ आकार में तुलनात्मक दृष्टि से छोटी हैं जो अप्सरा मूर्तियों के महत्व का संकेत देती हैं । मण्डप की दक्षिणी भित्ति पर अप्सरा की एक ऐसी मूर्ति है जो पंजों पर उचककर मानो दीवार पर चित्र बना रही हो ।
महामण्डप और अन्तराल की छतों पर पुष्प और ज्यामितीय अलंकरण तथा स्तम्भों पर कीचकों की द्विभुज, चतुर्भुज और षड्भुज तथा नाग आकृतियाँ हैं । कीचकों को समान्यतः दो हाथों से स्तंभों को सहारा देते हुए दिखाया गया है । चतुर्भुज होने पर अतिरिक्त दो हाथों में सामान्यतः फल एवं अभय मुद्रा प्रदर्शित हैं । कीचकों के दो हाथों में कभी-कभी लम्बी माला और शेष दो में गदा और फल या लम्बा खड्ग भी दिखाये गये हैं। कीचकों को सदा उड़ने की मुद्रा में दिखाया गया है और उनके गर्दन तथा पेट के मध्य का भाग पर्याप्त लंबा और अस्वाभाविक है । षड्भुज होने पर दो अतिरिक्त हाथों में सामान्यतः शंख दिखाया गया है । एक स्तंभ पर षड्भुज नारी कीचक की आकृति भी बनी है । नाग आकृतियों में कटि के ऊपर का भाग सर्पाकार है और उनके सिर के ऊपर तीन या पांच सर्पफगों का छत्र प्रदर्शित है ।
दहलीजों पर दोनों ओर गज और सिंह की योद्धा की भी आकृतियाँ हैं । गर्भगृह के चतुर्भुज मूर्तियां हैं । बायीं ओर की दो
अर्धमण्डप और गर्भगृह के प्रवेश द्वार की युद्धरत आकृतियाँ बनी हैं जिनके बीच में खड्गधारी प्रवेश-द्वार पर दो ओर गजलक्ष्मी और सरस्वती की जसे अभिषिक्त लक्ष्मी आकृति के हाथों में अभय मुद्रा, सनाल - पद्म (दो में) और जलपात्र हैं । ललित - मुद्रा में आसीन सरस्वती को दो हाथों से वीणा वादन करते हुये दिखाया गया है । उत्तरंग पर नवग्रहों की स्थानक आकृतियाँ हैं जिनके ऊपर तीर्थंकर पूजन का दृश्य है । द्वारशाखाओं पर वाद्यवादन और नृत्य करती हुयी आकृतियों के अतिरिक्त आलिंगनबद्ध स्त्री-पुरुष युगलों की भी १८ आकृतियाँ हैं । द्वार पर मकरवाहिनी गंगा और कूर्मवाहिनी यमुना की कलशधारी आकृतियां हैं। निचले भाग पर वैष्णव लक्षणों वाली चतुर्भुज द्वारपालों को मूर्तियाँ हैं । किरीट-मुकुट और कौस्तुभ से अलंकृत द्वारपालों के तीन सुरक्षित हाथों में चक्र, शंख और गदा हैं ।
अर्धमण्डप के प्रवेश द्वार पर भी गर्भगृह के प्रवेश द्वार के समान ही अलंकरण और शिल्पांकन हैं | उत्तरंग पर नवग्रहों तथा नृत्य और संगीत से संबंधित आकृतियाँ तथा ललाटबिब में चक्रेश्वरी की मूर्ति हैं । दहलीज पर भी वाद्य वादकों सहित नृत्यांगनाओं की आकृतियां
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