Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो का जैन पुरातत्त्व
वित्रस्त्रजघना मूर्तियों में सामान्यतः जांघ पर वृश्चिक और पैरों के पास कपि की आकृतियाँ (त्रास) बनी हैं; जांघ पर ही 'श्री' अभिलिखित है । विवस्त्रजघना मूर्तियों में 'श्री' शब्द का आलेखन विशेष सांकेतिक सन्दर्भ का हो सकता है। गर्भगृह की दक्षिणी भित्ति की एक स्त्री मूर्ति का दाहिना हाथ ऊपर उठा है और दूसरा हाथ योनि भाग के समक्ष उसे ढंकने की मुद्रा में प्रदर्शित है । स्त्री की साड़ी पैरों के समीप खड़ी कपि आकृति खींच रही है। इस प्रकार इस मूर्ति में बहुत ही सुन्दर ढंग से साड़ी के सरकने और फलस्वरूप नारी संकोच के साथ ही ऐन्द्रिक आर्कषण का भाव निर्दिष्ट है। ऐसी मूर्तियाँ अत्यन्त सहज रूप में दर्शकों के मन में ऐन्द्रिक अनुभूति का संचार करती हैं। दर्पण में मुख देखती या काजल लगाती या माँग में सिन्दूर भरती हुयी मूर्तियों में मुख पर उल्लास का भाव स्पष्ट है। अंगड़ाई लेती हुई मूर्तियों में सम्पूर्ण शरीर विशेषतः ग्रीवा और पैरों एवं हाथों की स्वाभाविक स्थिति से नारी शरीर के अंगों में मादक उभार अत्यन्त स्वाभाविक और आकर्षक रूप में प्रकट हुआ है । ऐसी मूर्तियों में केवल पैर का पिछला हिस्सा ही जमीन पर है और दोनों हाथ पीछे की ओर दिखाये गये हैं । ये मूर्तियाँ एक ओर अंगड़ाई की स्वाभाविक स्थिति दर्शाती है और साथ ही उस अवस्था में नारी की अंगयष्ठी के आकर्षक लोचों और उभारों द्वारा ऐन्द्रिकता के भाव का भी संचार करती हैं । अप्सराओं की सभी क्रियाओं में नारी शरीर के आकर्षण और उभार को कलाकारों ने सफलतापूर्वक प्रकट किया है । नृत्यरत मूर्तियों में पैरों, हाथों और उँगलियों की स्थितियाँ अत्यन्त स्वाभाविक रूप में नृत्य की मुद्रा दर्शाती हैं । गर्भगृह की उत्तरी भित्ति की मूर्ति में पैर में चुभे काँटे को निकालती हुयी अप्सराओं की दो मूर्तियाँ स्वाभाविकता की पराकाष्ठा को छूती हैं। एक उदाहरण में दाहिने पैर में कांटा चुभा होने के कारण अप्सरा को उस पैर को उठाये हुए और हाथ से काँटा निकालने को चेष्टा करते हुए दिखाया गया है । बायें पैर पर खड़ी इस आकृति का शारीरिक सन्तुलन प्रशंसनीय होने के साथ ही आकर्षक भी है। दाहिने पैरों के तलवे में स्पष्टतः काँटे का कुछ निकला हुआ भाग भी देखा जा सकता है । अप्सरा के पैरों के समीप ही थैला लटकाये एक पुरुष आकृति खड़ी है जो संभवतः काँटा निकालने वाले नापित की आकृति है । अप्सरा के मुख पर काँटा चुभने की पीड़ा का भाव भी सुन्दर ढंग से व्यक्त हुआ है। दूसरे उदाहरण में अप्सरा को अपने उठे हुए दाहिने पैर की ओर संकेत करते दिखाया गया है। केशों से जल निचोड़ती हुई अप्सरा मूर्तियों में केशों को काफी लम्बा और कटि के नीचे तक लटकता दिखाया गया है। अप्सराओं की ग्रीवा और केश पतले और लम्बे है। गर्भगृह की मूर्तियाँ मण्डप की अपेक्षा अधिक सुन्दर और सुरक्षित हैं। इन मूर्तियों में उँगलियाँ कमी तो छोटी और कभी काफी लंबी और पतली दिखायी गयी हैं। काजल लगाती हुयी आकृति में सामान्यतः दोनों आँखों को बराबर खुला दिखाया गया है जो स्वाभाविक नहीं है । काजल लगाते समय दोनों आंखें सामान्यतः खुली नहीं रह सकती। मण्डप की काजल लगातो हुई अप्सरा मूर्ति के समीप ही बायें पार्श्व में कंधे पर थैला लटकाये (प्रसाधन-पेटिका) एक पुरुष आकृति खड़ी है । मण्डप की उत्तरी भित्ति की महावर रचाती हुई मूर्ति में अप्सरा के हाथ में एक लम्बी शलाका दिखायी गयी है जो महावर रचाने की प्रारम्भिक स्थिति का
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