Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो का जैन पुरातत्त्वं तथा गर्भगृह की भित्ति के निर्धारित कोणों पर अष्टदिक्पालों का निरूपण हुआ है। सप्तमातृकाओं की मूर्तिर्यों में एक ओर गणेश और दूसरी ओर वीरभद्र की मूर्तियाँ बनी हैं । प्रतिमालक्षण की दृष्टि से दूलादेव मन्दिर के गर्भगृह के प्रवेश-द्वार की नृत्यरत सप्तमातृका मूर्तियाँ महत्वपूर्ण हैं । लक्ष्मण मन्दिर के गर्भगृह की भित्ति पर कृष्णलीला से सम्बन्धित तथा पार्श्वनाथ, लक्ष्मण और कन्दरिया महादेव मन्दिरों के अधिष्ठान और शिखर पर रामायण के दृश्यांकन हैं । कृष्णलीला के दृश्यों में कुवलयापीड-उद्धार, शकट-भंग, अरिष्टासुर-वध, यमलार्जुन-उद्धार, वत्सासुर-वध, तृणावर्त-वध, कालिय-मर्दन, पूतना-वध, कुब्जानुग्रह, चाणूर-युद्ध, शलयुद्ध एवं बलराम द्वारा सूतलोमहर्षण का वध मुख्य हैं। रामायण के दृश्यों में मारीच-वध, सीताहरण, अशोकवाटिका में सीता और वालि-सुग्रीव युद्ध मुख्य हैं।
प्रतिमालक्षण की दृष्टि से खजुराहो की मूर्तियाँ पारम्परिक और विकसित कोटि की हैं । देवमूर्तियों के निरूपण में सामान्यतः मुख्य आयुधों, वाहनों एवं अन्य लक्षणों की दृष्टि से शास्त्रीय ग्रन्थों का पालन किया गया है खजुराहो के मूर्ति निर्माण की परम्परा अधिकांशतः पुराणों एवं अपराजितपृच्छा (भुवनदेवकृत, १३ वीं शती ई० का उत्तरार्द्ध) से प्रभावित रही है । खजुराहो की मूर्तियों में शास्त्रीय विवरणों के प्रति प्रतिबद्धता के बाद भी कलाकार ने एकरसता के परिहार के लिए देवमूर्तियों में आयुधों के क्रम तथा सहायक आकृतियों के निरूपण में किंचित् परिवर्तनों द्वारा अपनी सूझ-बूझ को भी प्रदर्शित किया है। विभिन्न देवाकृतियों के हाथों में पद्म का प्रदर्शन खजुराहो में विशेष लोकप्रिय था। पद्म के जितने विविध रूप खजुराहो की देवमूर्तियों में मिलते है उतने अन्यत्र कहीं नहीं मिलते ।
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