Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो का जैन पुरातत्त्व
दिगम्बर सम्प्रदाय से सम्बद्ध खजुराहो के जैन मन्दिर एवं मूर्तियाँ लगभग ९५० से ११५० ई० के मध्य बनीं । तीर्थंकरों की निर्वस्त्र मूर्तियों तथा जैन मन्दिरों के प्रवेश द्वारों पर १६ मांगलिक स्वप्नों के उकेरन से मन्दिरों का पूरी तरह दिगम्बर सम्प्रदाय से संबद्ध होना स्पष्ट है । जैन मन्दिरों में पार्श्वनाथ मन्दिर प्राचीनतम और स्थापत्यगत योजना की दृष्टि से विशालतम है । प्रतिमाविज्ञान की दृष्टि से आदिनाथ मन्दिर की मूर्तियाँ विशेष महत्वपूर्ण हैं । घण्टई मन्दिर यद्यपि वर्तमान में खण्डित रूप में है किन्तु अपने मूलरूप में यह मन्दिर पार्श्वनाथ मन्दिर के समान विशाल और उतना ही सुन्दर भी रहा है। खजुराहो की जैन मूर्तियां प्राचीन तथा नवीन जैन मन्दिरों पर हैं। साथ ही अनेक मूर्तियाँ स्थानीय साहू शांति प्रसाद जैन, जार्डिन एवं पुरातात्विक संग्रहालयों में भी सुरक्षित हैं ।
खजुराहो को जैन मूर्तिकला में तीर्थंकरों की स्वतन्त्र मूर्तियों के साथ ही उनकी द्वितीर्थी और चौमुखी मूर्तियाँ भी बनीं । तीर्थंकरों के जीवन-दृश्यों के अंकन का यहां अभाव दृष्टिगत होता है । केवल कुछ तीर्थंकरों के अभिषेक से सम्बन्धित दृश्य ही मिलते हैं । ज्ञातव्य है दिगम्बर स्थलों पर तीर्थंकरों के जीवन दृश्यों का अंकन सामान्यतः नहीं हुआ है । ऐसे अंकन श्वेताम्बर स्थलों पर ही मिलते हैं, जिनके मुख्य उदाहरण ओसियाँ, कुंभारिया एवं दिलवाड़ा के जैन मन्दिरों में हैं । तीर्थंकरी के पश्चात् उनके शासनदेवताओं (या यक्ष-यक्षी) का निरूपण ही सर्वाधिक लोकप्रिय था । यक्ष और यक्षियों की मूर्तियाँ जिन-संयुक्त मूर्तियों के साथ ही स्वतंत्र रूप में भी बनीं । खजुराहों में केवल गोमुख - चक्रेश्वरी, सर्वा या सर्वानुभूति (या कुबेर ) -अम्बिका, धरणेन्द्र-पद्मावती एवं मातंग- सिद्धायिका की ही स्वतन्त्र मूर्तियाँ बनीं । ये यक्ष-यक्षी युगल क्रमशः ऋषभनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर के शासनदेवता हैं । तीर्थंकरों और शासनदेवताओं के पश्चात् जैन देवकुल में महाविद्याओं का ही महत्व था । यद्यपि महाविद्याओं के मूर्त अंकन के उदाहरण दिगम्बर स्थलों पर नहीं मिलते, किन्तु खजुराहो के आदिनाथ मन्दिर की १६ रथिकाओं में प्रतिष्ठित स्वतन्त्र लक्षणों वाली देवियों की पहचान जैन परम्परा के १६ महाविद्याओं से सम्भव है ।
खजुराहो के मन्दिरों में सरस्वती, लक्ष्मी, क्षेत्रपाल, बाहुबली एवं जैन आचार्यों आदि का भी निरूपण हुआ है । मन्दिरों के निर्धारित कोणों पर अष्टदिक्पालों की स्थानक मूर्तियाँ और प्रवेशद्वारों के उत्तरंगों पर नवग्रहों और बड़ेरियों पर १६ मांगलिक स्वप्नों का अंकन है । आदिनाथ मन्दिर पर गोमुख यक्ष या (अष्टवसुओं) की मूर्तियाँ भी आकारित हैं । जैन मन्दिरों पर अष्टदिक्पालों एवं नवग्रहों का निरूपण जैन धर्म में इनके पूजन का प्रमाण है। खजुराहो के ब्राह्मण मन्दिरों की मूर्तियों का किचित् प्रभाव अप्सराओं एवं कामक्रिया से सम्बन्धित शिल्पांकनों के साथ ही पार्श्वनाथ मन्दिर के मण्डप और गर्भगृह की जंघा और शिखरों की विभिन्न ब्राह्मण देवयुगल आकृतियों के अंकन में भी देखा जा सकता है । ज्ञातव्य है कि अन्य किसी भी स्थल पर जैन मन्दिर पर ब्राह्मण देव युगलों का और वह भी आलिंगन मुद्रा में निरूपण नहीं हुआ है । इनमें विष्णु, शिव, ब्रह्मा, काम, बलराम, राम आदि की शक्ति सहित आलिंगन मूर्तियाँ हैं । ऐसी मूर्तियाँ केवल पार्श्वनाथ मन्दिर पर ही हैं । जैन मन्दिरों के प्रवेश
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