Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो की जैन कला १९१५) और दूसरी ओर नेमिनाथ (विक्रम सम्वत् १९२७) की लांछनयुक्त मूर्तियाँ हैं । सम्वत् १९२७ के मूर्ति लेख से यह प्रतीत होता है कि इस मूर्ति की प्रतिष्ठा सम्वत् १९२७ में श्री कंछेदीलाल जैन (नगौद) एवं उनके परिवार के लोगों द्वारा खजुराहो में गजरथ के अवसर पर की गयी थी। मन्दिर क्रमांक २
इस मन्दिर के प्रवेशद्वार पर पार्श्वनाथ की प्राचीन और गर्भगृह में पद्मप्रभ की काले पाषाण की अर्वाचीन (२५ जनवरी, १९८१ को स्थापित) आसनस्थ मूर्तियाँ हैं । मन्दिर क्रमांक ३
___ मन्दिर के गर्भगृह में मूलनायक ऋषभनाथ की वृषभ लांछन वाली ध्यानस्थ मूर्ति (३'६' x २'६") है । इस मूर्ति के सिंहासन छोरों पर यक्ष-यक्षी के रूप में गोमुख और चक्रेश्वरी तथा परिकर में बाहुबली आमूर्तित हैं। बाहुबली के पावों में विद्याधारियों की आकृतियाँ भी बनी हैं । इस मनोज्ञ मूर्ति में जटामुकुट एवं घुमावदार लटों वाली कन्धों पर लटकती जटाओं का संयोजन बहुत सुन्दर है । मूलनायक का मुख अत्यन्त सुन्दर एवं शान्त है । आकृति के ओंठ एवं ठुड्डी अत्यन्त आकर्षक एवं तीखे हैं। साथ ही खिले हुए कमल एवं मुक्ता अलंकरणों वाला प्रभामण्डल भी मनोहारी है। दो पार्श्ववर्ती रथिकाओं में सुमतिनाथ ( चकवा लांछन, २' ६३"x १' ५" ) एवं अभिनन्दन ( कपि-लांछन, २' १०' x १' ७' ) की भी ध्यानस्थ मूर्तियाँ हैं। लगभग ११ वीं शती ई० को इन दोनों ही मूर्तियों में यक्ष-यक्षी भी दिखाये गये हैं। प्रवेशद्वार पर बायीं ओर वाराही एवं चामुण्डा की त्रिभंग आकृतियाँ हैं । मन्दिर क्रमांक ४
मन्दिर के प्रवेशद्वार पर किसी तीर्थंकर के अभिषेक का दृश्यांकन है । वेदि पर जनवरी १९८१ में स्थापित ( विक्रम सम्वत् २०३७ ) श्वेत संगमरमर की शीतलनाथ, विमलनाथ एवं महावीर की मूर्तियाँ हैं। मन्दिर क्रमांक ५
इस मन्दिर का प्रवेशद्वार अत्यन्त अलंकृत है । मूलनायक के रूप में मल्लिनाथ प्रतिष्ठित है। पार्श्ववर्ती रथिकाओं में नेमिनाथ एवं मुनिसुव्रत की श्वेत संगमरमर की जनवरी, १९८१ ( विक्रम सम्वत् २०३७ ) में स्थापित लांछनयुक्त ध्यानस्थ मूर्तियाँ हैं । मन्दिर क्रमांक ६
__ मन्दिर के प्रवेशद्वार के उत्तरंग के मध्य में तीर्थकर तथा छोरों पर चक्रेश्वरी और अम्बिका यक्षियों की मूर्तियाँ है । द्वारशाखाओं पर गंगा और यमुना की तथा गर्भगृह में सुपाश्वंनाथ की कायोत्सर्ग (३' ९''x २') मूर्तियाँ हैं। सुपार्श्वनाथ के चरणों के समीप दो आयिकाओं की भी आकृतियाँ उकेरी है। मध्यवर्ती सुपार्श्वनाथ प्रतिमा के दोनों ओर बिल्हारी से प्राप्त कलचुरी काल की दो कायोत्सर्ग तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं। दाहिनी ओर अजितनाथ ( ३' ७"x
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