Book Title: Kaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Author(s): Banarsidas Chaturvedi
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag

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Page 11
________________ सन् १९१४ की बात है । मै बुलन्दशहर मे, उत्तरप्रदेशीय आर्य प्रतिनिधि सभा का उपमन्त्री था। वहाँ नागरी प्रचारिणी सभा स्थापित करने मे, अन्य साथियों के साथ मेरा भी पूर्ण सहयोग था। नागरी प्रचारिणी सभा का प्रथग वार्षिकोत्सव मनाना निश्चित हुआ। विद्वानो को बुलाने का कार्य मुझे सोपा गया। मैंने आचार्य प्रवर पं० पद्मसिंह शर्मा, प्रो. रामदास गौड़, माहित्याचार्य पं० शालग्राम शास्त्री और कविरत्न सत्यनारायणजी को पधारने के लिये लिखा। सबकी स्वीकृति आगयी। जिन्होंने जिस तारीख को जिस ट्रेन से आने को लिखा, वे उसी दिन और उसी ट्रेन से पधारे। सबके स्वागतार्थ निश्चित ट्रेन पर सवारी लेकर हम लोग पहुँचे और बड़े आदर से उन्हे लाये । कविरत्नजी ने जो ट्रेन लिखी थी, उससे वे नही आए, हम लोग स्टेशन से निराश लौटे और खयाल किया कि वे अब नही आयेगें! उसी दिन रात्रि के समय, जब उत्सव में प्रो० रामदासजी गौड़ का सचित्र भाषण हो रहा था और आचार्य पद्मसिंह शर्मा अध्यक्ष-आसन पर विराजमान थे, एक वकील मित्र ने मंच पर आकर मुझसे कहा “अरे भाई, एक गवार गले में दुपट्टा और कन्धे पर खुर्जी डाले 'हरिशंकर'-'हरिशंकर' बकता फिरता है । मैं उसे फटकार कर आया हूँ कि तुम्हें किसी का नाम लेने की भी तमीज़ नहीं है।" यह सुनकर मैं ताड़ गया और तुरन्त सब साथियो से कहा कि लो मित्रो, कविरत्न सत्यनारायणजी आगये ! ज्यों ही मैं कविरत्नजी के पास पहुँचा, वे बड़े प्रेम से गले मिले और बोले-'भैया हरीशंकर, कल मैं न आय पायो, माफ़ करिओ।" मंच पर आते ही सब आमन्त्रित विद्वान् सत्यनारायणजी से गले मिले । प्रो. रामदास गौड़ भी अपना भाषण क्षण भर के लिये बन्दकर, कविरलजी से चिपट गये । यह देखकर कचेसर कोठी के मैदान में हो रही, भरी सभा में बैठे कई सहस्र श्रोताओ को बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह कहाँ का ग्रामीण आगया, जिसका बड़े-बड़े विद्वान् इस प्रकार स्वागत-सत्कार कर रहे है ! उस समय सब को बताया गया कि सरलता की मूर्ति कविरल श्री पं० सत्यनारायणजी आगरा

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