Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala
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.......................... कमीत जोगेहिं तयणुरूवं, परिणमइ गिण्हिऊण पंच तणू। पाउग्गे वालंबइ, भासाणुमणत्तणे खंधे ॥१७॥ परमाणुसंखऽसंखाऽ-णंतपएसा अभव्वणंतगुणा । सिद्धाणणंतभागो, आहारगवग्गणा तितणू ॥१८॥ अग्गहणंतरियाओ, तेयगभासामणे य कम्मे य । धुवअधुवअच्चित्ता, सुन्नाचउअंतरेसुप्पिं ॥१९॥ पत्तेगतणुसु बायर-सुहुमनिगोए तहा महाखंधे । गुणनिप्फन्नसनामा, असंखभागंगुलवगाहो ॥२०॥ एगमवि गहणदव्वं, सव्वप्पणयाइ जीवदेसम्मि । सव्वप्पणया सव्वत्थ, वावि सव्वे गहणखंधे ॥२१॥ नेहप्पच्चयफड्डगमेगं, अविभागवग्गणा णंता। हस्सेण बहू बद्धा, असंखलोगे दुगुणहीणा ॥२२।। नामप्पओगपच्चयगेसु वि, नेया अणंतगुणणाए । धणिया देसगुणा सिं, जहन्नजेटे सगे कट्ट ॥ 13।। मूलुत्तरपगईणं, अणुभागविसेसओ हवइ भेओ । अविसेसियरसपगईओ, पगईबंधो मुणेयब्वो २४ जं सव्वघाइपत्तं, सगकम्मपएसणंतमो भागो। आवरणाण चउद्धा, तिहा य अह पंचहा विग्धे ॥२१॥

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