Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala
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कर्मप्रकृति ।
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पूरित्तु पुत्वकोडीपुहुत्त, संछोभगस्स निरयदुग । देवगईनवगस्स य, सगबंधंतालिगं गंतुं ॥१०॥ सव्वचिरं सम्मत्तं, अणुपालिय पूरयित्तु मणुयद्गं। सत्तमखिइनिग्गइए, पढमे समए नरदुगस्स॥११॥ थावरतजाआया-वुजोयाओ नपुंसगसमाओ। आहारगतित्थयरं, थिरसममुक्कस्स सगकालं॥९२॥ चउरुवसमित्तु मोहं, मिच्छत्तगयस्स नीयबंधंतो। उच्चागोउकोसो, तत्तो लहुसिज्झो होइ ॥१३॥ पल्लासंखियभागूण, कम्मठिइमच्छिओ निगोएसु। सुहुमेसुऽभवियजोग्गं, जहन्नयं कट्ट निग्गम्म ९४ जोग्गेसुऽसंखवारे, सम्मत्तं लभिय देसविरहं च । अट्ठक्खुत्तो विरई, संजोयणहा तइयवारे ॥१५॥ चउरुवसमित्तु मोहं, लहुं खतो भवे खवियकम्मो। पाएण तहिं, पगयं, पडुच्च काओ वि सविसेसं ९६ आवरणसत्तगम्मि उ सहोहिणा तं विणोहिजुय
लम्मि । निदादुगंतराइय-हासचउक्के य बंधते ॥१७॥ सायस्स णुवसमित्ता, असायबंधाण चरिमबंधते । खवणाए लोभस्स वि, अपुवकरणालिगा अंते ९८

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