Book Title: Karmprakruti Mool
Author(s): Vanchayamashreeji
Publisher: Girdharlal Kevaldas Dalodwala
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उदीरणाकरणम्
वेउब्विउवंगाए, तणुतुल्ला पवणबायरं हिचा । आहारगाए विरओ, विउव्वयंतो पमत्तो य॥९॥ छण्हं संठाणाणं, संघयणाणं च सगलतिरियनरा। देहत्था पजत्ता, उत्तमसंघयणिणो सेढी ॥ १० ॥ चउरंसस्स तणुत्था, उत्तरतणु सगलभोगभूमिगया। देवाइयरे हुंडा, तसतिरियनरा य सेवा ॥११॥ संघयणाणि न उत्तरतणूसु, तन्नामगा भवंतरगा। अणुपुवीणं परघायस्स उ देहेण पजत्ता ॥१२॥ बायरपुढवी आयावस्सय,वजित्तु सुहुमसुहुमतसे। उज्जोवस्स य तिरिए, उत्तरदेहो य देवजई ॥१३॥ सगलो य इट्टखगइ, उत्तरतणुदेवभोगभूमिगया। इट्ठसराएतसा विय, इयरासि तसा सनेरइया॥१४॥ उस्सासस्स सराण य, पज्जत्ता आणपाणभासासु । सव्वन्नूणुस्सासो, भासा विय जान रुज्झंति १५ देवो सुभगाएजाण, गब्भवकंतिओ य कित्तीए । पजत्तो वजिता, ससुहुमनेरइयसुहुमतसे ॥१६॥ गोउत्तमस्स देवा नरा य, वइणो चउण्हमियरासिं तव्वइरिचा तित्थगरस्स उ, सव्वन्नुयाए भवे॥१७॥

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